उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव से पहले आरक्षण को लेकर जबरदस्त घमासान मचा हुआ है. प्रदेशभर से पंचायतों में आरक्षण की अनंतिम सूची पर अब तक तीन हजार से अधिक आपत्तियां दर्ज हो चुकी हैं. ‘कांग्रेस’ भी इस आरक्षण प्रक्रिया को ‘खामियों से भरा’ बता रही है. वहीं संभावित प्रत्याशी भी सीटों के आरक्षण को लेकर असंतोष जता रहे हैं. सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री नवप्रभात ने आरक्षण व्यवस्था को मनमानी करार दिया है.
नवप्रभात ने विकासनगर विकासखंड की पंचायतों का उदाहरण देते हुए कहा कि यहां एसटी की सीटें अचानक बढ़ा दी गई हैं, जबकि एससी और ओबीसी की सीटों में कटौती की गई है. उनका कहना है कि यह आरक्षण 2011 की जनगणना के आधार पर किया गया है, जबकि पूर्व में जो आरक्षण व्यवस्था थी, उसमें इस तरह का बदलाव नहीं होना चाहिए था. “यह अधिकारों का खुला हनन है,”. उन्होंने आरक्षण के इस प्रारूप को पंचायतों के सामाजिक संतुलन के साथ खिलवाड़ बताते हुए सरकार से पुनर्विचार की मांग की है.
जिलेवार आपत्तियों की संख्या
आरक्षण सूची के अनंतिम प्रकाशन के बाद सबसे अधिक आपत्तियां ऊधमसिंह नगर जिले से सामने आई हैं, जहां 800 से अधिक आपत्तियां दर्ज की गई हैं. इसके अलावा देहरादून से 302, अल्मोड़ा से 294, पिथौरागढ़ से 277, चंपावत से 337, पौड़ी से 354 , चमोली से 213, रुद्रप्रयाग से 90, उत्तरकाशी से 383 और टिहरी से 297 आपत्तियां आई हैं.
हरिद्वार को छोड़कर प्रदेश के 12 जिलों में पंचायत चुनाव कराए जा रहे हैं. चुनाव प्रक्रिया में आरक्षण सबसे संवेदनशील मुद्दा बनकर उभरा है. कई ग्राम पंचायतों में लगातार दूसरी बार भी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी गई हैं, जिस पर ग्राम प्रधानों और क्षेत्रीय नेताओं ने आपत्ति जताई है.
विभागीय अधिकारियों का पक्ष
पंचायती राज विभाग के अधिकारियों का कहना है कि आरक्षण शासनादेश के अनुसार किया गया है. प्राप्त आपत्तियों पर जिलाधिकारी 17 जून तक सुनवाई करेंगे. इसके बाद 18 जून को संशोधित और अंतिम आरक्षण सूची प्रकाशित की जाएगी.
प्रदेश में पंचायत चुनाव की हलचल के बीच आरक्षण का मुद्दा सियासी रंग भी लेता जा रहा है. जहां सरकार नियमों के तहत काम करने का दावा कर रही है, वहीं विपक्ष इसे जनभावनाओं के खिलाफ और लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन बता रहा है