Homeउत्तराखण्डझील में समा गई एक और  मासूम ज़िंदगी

झील में समा गई एक और  मासूम ज़िंदगी

  • किशोरों की मानसिक स्थिति
  • यह उम्र बहुत संवेदनशील होती है। छोटी-छोटी बातों का असर गहरा हो सकता है।
  • परिजनों द्वारा डांटना अक्सर अनुशासन के लिए होता है, लेकिन अगर संवाद की कमी हो तो बच्चा खुद को अकेला या अस्वीकार किया हुआ महसूस कर सकता है।
  • परिवार की भूमिका
  • बच्चों की भावनाओं को समझना और उन्हें व्यक्त करने के लिए सुरक्षित माहौल देना जरूरी है।
  • डांटने की जगह अगर संवाद का तरीका अपनाया जाए तो स्थितियां अलग हो सकती हैं।
  • समाज और विद्यालय की जिम्मेदारी
  • स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा होनी चाहिए, काउंसलिंग की सुविधा होनी चाहिए।
  • बच्चों को सिखाना चाहिए कि हर समस्या का समाधान आत्महत्या नहीं होता।
  • सामूहिक जागरूकता की ज़रूरत
  • ऐसे मामलों में जागरूकता फैलाना जरूरी है ताकि अन्य परिवार इस प्रकार की घटनाओं से सबक लेकर समय रहते संवाद कर सकें।
  • इस घटना से सीख लेते हुए हमें यह समझने की ज़रूरत है कि बच्चों को केवल खाना, कपड़ा, शिक्षा नहीं, बल्कि संवेदनात्मक सुरक्षा भी चाहिए। माता-पिता, शिक्षकों और समाज को मिलकर एक ऐसा वातावरण बनाना होगा, जिसमें बच्चे अपने डर, गुस्से और दुख को बिना झिझक के साझा कर सकें।
  • अगर आप चाहें तो मैं किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर एक जागरूकता पोस्टर या स्कूल में चर्चा के लिए प्रस्तुति भी तैयार करने में मदद कर सकता हूँ।

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  • छोटी सी डांट, झील में समा गई एक मासूम ज़िंदगी
  • नैनीताल की शांत नैनीझील ने एक बार फिर एक मासूम की खामोश चीख को अपने भीतर समा लिया। मल्लीताल क्षेत्र में रहने वाली 13  वर्षीय अंजलि ने बृहस्पतिवार सुबह अपने ही घर में छोटी सी  डांट से आहत होकर झील में कूदकर जान दे दी। यह घटना केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि समाज के सामने एक बड़ा सवाल है — आखिर क्यों, इतनी छोटी उम्र में बच्चे मौत को गले लगाने लगे हैं?
  • क्या हुआ उस सुबह?
  • आयारपाटा निवासी संजय की बेटी अंजलि का अपने भाई के साथ किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ। घर में मामूली विवाद पर मां ने दोनों को डांटा और शांत रहने को कहा। लेकिन शायद मां की डांट ने अंजलि के कोमल मन पर गहरा असर छोड़ा। नाराज होकर वह सुबह करीब 9 बजे घर से निकलगई।    काफी देर तक जब वह वापस नहीं लौटी, तो घरवालों की चिंता बढ़ी। मां ने आसपास खोजबीन की, लेकिन जब कोई सुराग नहीं मिला, तो कोतवाली में गुमशुदगी दर्ज करवाई गई।
  • झील किनारे चप्पलें, और फिर मौत की पुष्टि
  • पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज खंगाले तो पता चला कि अंजलि ठंडी सड़क की ओर गई थी। पाषाण देवी मंदिर के पास, समर हाउस के निकट उसकी चप्पलें झील किनारे मिलीं। इसके बाद एसडीआरएफ, अग्निशमन विभाग और पुलिस की टीम ने संयुक्त रूप से सर्च ऑपरेशन चलाया। लगभग डेढ़ घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद झील से अंजलि का शव बरामद हुआ।

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  • मनोवैज्ञानिक क्या कहते हैं?
  • इस तरह की  दर्दनाक घटना ने फिर से  सवाल खड़े कर दिए हैं।   क्या अब बच्चों में  भावनात्मक सहनशीलता इतनी कम हो गई है? क्या माता-पिता डांटते वक्त यह सोचते हैं कि बच्चा इसे कैसे ले सकता  है
  • बाल मनोविज्ञानिकों का कहना है                                 13  साल की उम्र में बच्चे मानसिक रूप से परिपकव नहीं होते, लेकिन भावनात्मक रूप से बेहद संवेदनशील होते हैं। अगर उन्हें लगे कि उनकी बात नहीं सुनी जा रही, या उन्हें बार-बार अपमानित किया जा रहा है, तो वे चरम कदम उठा सकते हैं .
  • साइकोलॉजिस्टो  का कहना है                            बच्चों को अपनी भावनाएं व्यक्त करने का मौका देना जरूरी है। कई बार घर में संवाद की कमी उन्हें भीतर ही भीतर तोड़ देती है।  इस समय इंटरनेट और  मोबाईल  माध्यमों ने बच्चों को आत्मकेंद्रित बना दिया है . शाररिक  खेलों मे आई कमी ने भी तनाव को सहन  करने  की क्षमता को काफी कम किया है .      इस उम्र में आत्मसम्मान बहुत नाजुक होता है.

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  • समाज को क्या करना चाहिए
  • यह घटना सिर्फ एक बच्ची की नहीं है। ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं जहां किशोर छोटी-छोटी बातों पर आत्महत्या जैसे गलत  निर्णय ले लेते हैं। इस पर रोक लगाने के लिए जरुरी कदम उठाने की जरुरत है .
  • स्कूलों में नियमित रूप से मानसिक स्वास्थ्य काउंसलिंग होनी चाहिए।
  • माता-पिता को पैरेंटिंग की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए कि कैसे बच्चों से संवाद करें।
  • बच्चों को सिखाना होगा कि असफलता या डांट दुनिया का अंत नहीं है।
  • भावनात्मक शिक्षण (Emotional Literacy) को शिक्षा का हिस्सा बनाना जरूरी है।                              आज बच्चों के बेहतर पालन-पोषण के लिए माता- पिता को  शिक्षा  मनोविज्ञान की समझ होना जरुरी है . अर्थात माता- पिता को भी बाल- साहित्य पढ़ना बहुत जरुरी है .

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  • अंजलि चली गई —  एक पल की नाराज़गी और पूरी ज़िंदगी   खत्म । लेकिन क्या हम चेतेंगे? या …….
  • अभी भी  समय है कि हम सभी — अभिभावक, शिक्षक, समाज — मिलकर बच्चों को केवल ‘पालने’ नहीं, समझने का भी लगातार  प्रयास करें।