उत्तराखंड में एक बार फिर आपदा प्रबंधन की अपनी तैयारियों को परखा जा रहा है. आगामी 30 जून 2025 को पूरे राज्य में एक वृहद आपदा मॉक ड्रिल का आयोजन किया जाएगा. प्रसाशन का कहना है कि यह ड्रिल केवल एक अभ्यास भर नहीं बल्कि आपदा की घड़ी में त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया देने की रणनीति का सजीव परीक्षण होगी.
राज्य आपदा प्रबंधन विभाग और जिला प्रशासन की अगुवाई में होने वाली यह मॉक ड्रिल कई एजेंसियों के समन्वित प्रयास का परिणाम होगी. जिसमें NDRF, SDRF, पुलिस, फायर ब्रिगेड, स्वास्थ्य विभाग, और स्थानीय निकायों की भागीदारी सुनिश्चित की गई है.
क्यों जरूरी है मॉक ड्रिल
उत्तराखंड का भौगोलिक स्वरूप और इसकी जलवायु इसे प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से बेहद संवेदनशील बनाता है. भूकंप, भूस्खलन, बाढ़, और बादल फटने जैसी घटनाएं यहां अक्सर होती रहती हैं. ऐसे में मॉक ड्रिल जैसे अभ्यास यह सुनिश्चित करते हैं कि आपदा आने पर तंत्र किस हद तक तैयार है और किन क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है.
विशेषज्ञों के अनुसार उत्तराखंड में – जलवायु परिवर्तन , कस्बों में एक ही जगह जनसँख्या का बढ़ते जाना , पहाड़ में अत्यधिक खनन, सड़क के लिए पहाड़ों को बारूद से तोड़ना और लगातार बढ़ रहे पर्यटक दबाव के चलते आपदा जोखिम और अधिक बढ़ते जा रहा है. चारधाम यात्रा और अन्य धार्मिक पर्यटन स्थलों पर लाखों की संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है. जल्दी ही नहीं जागे तो हालत और ख़राब हो सकते हैं .
क्या होता है मॉक ड्रिल में?
इस ड्रिल के दौरान मानक परिदृश्य (जैसे – भूकंप या बाढ़) तैयार किया जाएगा और फिर उसे वास्तविक स्थिति की तरह क्रियान्वित किया जाएगा. इसमें शामिल होंगे:
- इवैकुएशन प्लान का अभ्यास: आपदा आने पर किस रास्ते से लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाया जाएगा, यह प्रयोग कर दिखाया जाएगा.
- रेस्क्यू और राहत: घायल लोगों को निकालना, प्राथमिक उपचार देना और उन्हें अस्पताल पहुंचाने की प्रक्रिया का अभ्यास.
- अंतर-एजेंसी समन्वय: यह जांचा जाएगा कि अलग-अलग विभागों के बीच समन्वय कितना बेहतर है और क्या वे एक-दूसरे की कार्रवाई में सहयोग कर पा रहे हैं.
- संसाधनों की उपलब्धता: आवश्यक उपकरण, वाहन, मेडिकल किट और संचार प्रणाली कितनी तत्परता से काम करती हैं, इसका परीक्षण.
क्या लाभ मिलता है मॉक ड्रिल से?
- तत्परता की जांच: आपदा आने से पहले ही यह स्पष्ट हो जाता है कि तंत्र कहां मजबूत है और कहां सुधार की आवश्यकता है.
- प्रशिक्षण और अनुभव: अधिकारियों, राहतकर्मियों और आम नागरिकों को वास्तविक समय में आपदा का सामना करने का अनुभव मिलता है.
- जनजागरूकता में वृद्धि: लोग जान पाते हैं कि आपदा आने पर उन्हें क्या करना है, कैसे सुरक्षित रहना है और प्राथमिक उपचार कैसे देना है.
- संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान: ड्रिल के दौरान ऐसे स्थान चिन्हित किए जाते हैं, जहां लोगों को फौरन निकाला जाना चाहिए या जिन्हें विशेष निगरानी की आवश्यकता है.
- नीति निर्धारण में सहायता: मॉक ड्रिल के निष्कर्षों के आधार पर राज्य सरकार भविष्य की आपदा प्रबंधन नीतियों को और बेहतर बना सकती है.
स्थानीय सहभागिता भी होगी महत्वपूर्ण
इस बार की मॉक ड्रिल में स्थानीय ग्राम पंचायतों, नगर निकायों और स्कूलों को भी शामिल किया जा रहा है. इसका उद्देश्य ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में आपदा के प्रति जागरूकता फैलाना है, ताकि कोई भी नागरिक अनजान या असहाय न रहे.
राज्य सरकार का मानना है कि आपदा को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता, लेकिन उसकी तैयारी से जान-माल के नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है.