हल्द्वानी। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी के तत्वावधान में “हिमालय के लोकवृत्त में उत्तराखण्ड का भाषा परिवार” विषय पर आयोजित द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में राज्य की विविध भाषाओं और बोलियों के संकट एवं संरक्षण पर गहन मंथन हुआ। संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने चिंता जताई कि उत्तराखंड की 13 से अधिक स्थानीय भाषाएं संकटग्रस्त हैं और उनके बचाने के लिए ठोस नीतिगत प्रयासों की जरूरत है।
पुस्तक मेले और विद्वत सम्मेलन का शुभारंभ
कार्यक्रम का शुभारंभ मंगलवार को प्रसिद्ध भाषाविद् प्रो. वी. आर. जगन्नाथन द्वारा पुस्तक मेले के उद्घाटन के साथ हुआ। इस मौके पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नवीन चन्द्र लोहनी, प्रो. जगत सिंह बिष्ट, प्रो. देव सिंह पोखरिया और प्रो. जितेन्द्र श्रीवास्तव जैसे वरिष्ठ साहित्यकार मौजूद रहे।
भाषाई विविधता को बचाने की जरूरत
मुख्य अतिथि प्रो. वी. आर. जगन्नाथन ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि हिंदी की विविध बोलियां उसकी जीवंतता का प्रमाण हैं। उन्होंने कहा, “भारत में भाषाई नीति का संतुलन अत्यंत आवश्यक है ताकि हिंदी और उसकी बोलियों — दोनों का समानांतर विकास हो सके।”
कुमाऊंनी और गढ़वाली की उपभाषाओं पर चिंता
संगोष्ठी के समानांतर सत्रों में कुमाऊंनी और गढ़वाली की उपभाषाओं की स्थिति पर चर्चा हुई। वक्ताओं ने कहा कि दनपुरिया जैसी कई बोलियों का लिखित साहित्य बहुत कम उपलब्ध है और नई पीढ़ी में अंग्रेजी शब्दों के बढ़ते प्रयोग से यह संकट और गहरा रहा है।
प्रो. चन्द्रकला रावत ने कहा, “वैश्वीकरण के इस दौर में गंभीर भाषायी संकट है। भाषा को एक मानक रूप में लाने और उसे डिजिटल रूप में संरक्षित करने की जरूरत है।”
“भाषाई संकट मत्स्य न्याय का शिकार”
‘गढ़वाली की उपभाषाएँ’ सत्र की अध्यक्षता कर रहे डॉ. नंद किशोर हटवाल ने एक चौंकाने वाला तथ्य रखा। उन्होंने कहा, “संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में उत्तराखंड की 13 स्थानीय भाषाओं को संकटग्रस्त बताया है। भाषाई संकट मत्स्य न्याय का शिकार है, जहां बड़ी भाषा छोटी भाषा को निगल रही है।”
डॉ. हटवाल ने चेतावनी देते हुए कहा कि भाषाओं को सिर्फ ‘किचन लैंग्वेज’ बनकर नहीं रह जाना चाहिए, बल्कि उनका प्रयोग व्यवसाय और विज्ञान में भी होना चाहिए।
युवा पीढ़ी को आशा की किरण
हालांकि, कुछ वक्ताओं ने युवा पीढ़ी को इस संकट से निपटने में एक आशा के रूप में देखा। प्रो. प्रभा पंत ने कहा, “हमारी युवा पीढ़ी सचेत हो रही है। वह सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म के माध्यम से लोक गीतों और नाटकों को पेश करके अपनी बोलियों के संरक्षण में योगदान दे रही है।”
राजभाषा, संपर्क भाषा और मातृभाषा का संतुलन
संगोष्ठी में एकमत से यह राय सामने आई कि राजभाषा, संपर्क भाषा और मातृभाषा के बीच एक स्वस्थ संतुलन बनाना जरूरी है। साथ ही, भाषाओं के पारस्परिक संवाद से ही राष्ट्रीय एकता और भाषाई विकास दोनों को सुदृढ़ किया जा सकता है।
इस अवसर पर श्री प्रकाश चन्द्र तिवारी के कहानी संग्रह “किरायेदार” का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम में कुमाऊंनी, गढ़वाली, रंवाल्टी, जौनसारी, बुक्सा सहित राज्य की विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने भाग लिया।


