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नैनीताल पहुंचीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू: इस प्रसिद्ध मंदिर में पहली बार पहुंचा कोई राष्ट्रपति

नैनीताल। आज का दिन उत्तराखंड के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से दर्ज हो गया है। देश की प्रथम नागरिक, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नैनी झील की इस रमणीय भूमि पर कदम रखकर एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक अध्याय का शुभारंभ किया। यह कोई सामान्य राजकीय यात्रा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक सलगम है, जिसने पहाड़ों की इस धरती को गौरवान्वित कर दिया।

आस्था का सफर: नयना देवी से लेकर कैंची धाम तक

सुबह की पहली किरण के साथ ही राष्ट्रपति मुर्मू ने अपनी दिव्य यात्रा की शुरुआत नैनीताल की अधिष्ठात्री देवी, मां नयना देवी के मंदिर से की। मान्यता है कि इसी स्थान पर देवी सती की आंखें गिरी थीं। राष्ट्रपति ने यहां पूजा-अर्चना कर राष्ट्र की सुख, शांति और खुशहाली की कामना की। मंदिर परिसर में एक पवित्र और शांत माहौल था, जहां आस्था और देशभक्ति की भावनाएं एकाकार हो रही थीं।

लेकिन इस यात्रा का सबसे ऐतिहासिक पल वह था जब राष्ट्रपति का काफिला बाबा नीम करौली की पावन भूमि, कैंची धाम पहुंचा। यह पहली बार है जब देश के किसी राष्ट्रपति ने इस पवित्र सिद्धपीठ के दर्शन किए। इस ऐतिहासिक घटना के महत्व को देखते हुए, मंदिर प्रबंधन ने सुबह छह बजे से दोपहर 12 बजे तक आम श्रद्धालुओं के लिए मंदिर को बंद रखने का फैसला किया। एक तरह से, पूरा कैंची धाम आज सिर्फ और सिर्फ देश की प्रथम नागरिक की आस्था के लिए समर्पित था।

सुरक्षा का अभूतपूर्व इंतजाम

इस ऐतिहासिक दिवस की सुरक्षा में कोई कोताही नहीं बरती गई। नैनीताल एसएसपी ने पूरे क्षेत्र को रेड जोन घोषित कर दिया था। सुरक्षा के लिए 1500 से अधिक पुलिस अधिकारियों और जवानों को सतर्क और सक्रिय रूप से तैनात किया गया था। हर मोड़ पर सुरक्षा बलों की मौजूदगी इस बात का प्रमाण थी कि यह कोई साधारण दिन नहीं था।

राजभवन का ऐतिहासिक स्वागत और 125वीं वर्षगांठ

रविवार की शाम को ही जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का हेलिकॉप्टर हल्द्वानी के आर्मी हेलीपैड पर उतरा, तो उनका भव्य स्वागत राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से.नि.), कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत और कुमाऊं के शीर्ष अधिकारियों ने किया। उन्हें सीधे नैनीताल स्थित राजभवन लाया गया, जहां उन्होंने न केवल विश्राम किया, बल्कि राजभवन की 125वीं वर्षगांठ के कार्यक्रम में भी शामिल हुईं।

इस अवसर पर राजभवन का माहौल उत्सव और गरिमा से सराबोर था। उत्तराखंड की समृद्ध लोक संस्कृति और परंपराओं को दर्शाती सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने समां बांध दिया। राजभवन की गौरवशाली विरासत को दर्शाती एक लघु फिल्म ने सभी को अतीत की ओर ले जाने का काम किया।

राष्ट्रपति ने इस मौके पर अपने संबोधन में कहा, “जैसे स्वतंत्र भारत में राष्ट्रपति भवन गणराज्य का प्रतीक है, वैसे ही राज्यों में राजभवन लोकतांत्रिक व्यवस्था का प्रतीक हैं।” उन्होंने राजभवन से जुड़े सभी लोगों को सरलता, विनम्रता, नैतिकता और संवेदनशीलता का पालन करने की प्रेरणा दी।

कुमाऊं विश्वविद्यालय के इतिहास में स्वर्णिम अध्याय

राष्ट्रपति मुर्मू की यात्रा का अगला और अंतिम पड़ाव कुमाऊं विश्वविद्यालय का 51वां दीक्षांत समारोह होगा। सुबह 11:35 बजे से 12:15 बजे तक चलने वाले इस समारोह में वे मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगी और 20 मेधावी विद्यार्थियों को गोल्ड मेडल देंगी।

कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर डी.एस. रावत ने गर्व के साथ कहा कि यह विश्वविद्यालय के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना है। यह पहला मौका है जब देश की प्रथम नागरिक इसके दीक्षांत समारोह की शोभा बढ़ाएंगी। निस्संदेह, यह दिन न केवल विश्वविद्यालय बल्कि पूरे कुमाऊं अंचल के लिए सदैव याद रखा जाएगा।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की यह एक दिवसीय यात्रा नैनीताल के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। इस यात्रा ने आस्था, शिक्षा और लोकतंत्र के तीन स्तंभों को एक सूत्र में पिरो दिया। मां नयना देवी के आशीर्वाद से शुरू हुआ यह सफर कैंची धाम की पावन भूमि से होता हुआ कुमाऊं विश्वविद्यालय के मेधावी युवाओं तक पहुंचा। यह केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि उत्तराखंड के गौरव और भारत की लोकतांत्रिक एकता का एक जीवंत और अविस्मरणीय प्रसंग बन गया है।