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लिव-इन रिलेशनशिप प्रावधान केंद्र में, उत्तराखंड हाईकोर्ट 10 नवंबर को सुनेगा UCC वैधता याचिकाएं

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य के यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC), 2025 की संवैधानिक वैधता और विशेष प्रावधानों को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर 10 नवंबर को सुनवाई की तारीख तय की है। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने की, जिसमें सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शामिल हुए। यूसीसी के विभिन्न पहलुओं के खिलाफ हाईकोर्ट में आधा दर्जन से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं।

लिव-इन रिलेशनशिप के प्रावधान बने विवाद का केंद्र

भीमताल निवासी सुरेश सिंह नेगी द्वारा दायर एक याचिका में लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) से जुड़े प्रावधानों को चुनौती दी गई है। याचिका में तर्क दिया गया है कि यह मुस्लिम और पारसी जैसे समुदायों की विवाह संबंधी प्रथाओं (Marital Customs) को नजरअंदाज करता है। नेगी की याचिका में एक विसंगति की ओर भी इशारा किया गया है, जिसमें कहा गया है कि जहां पुरुषों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और महिलाओं के लिए 18 वर्ष है, वहीं यूसीसी के तहत लाइव-इन रिलेशनशिप के लिए न्यूनतम आयु दोनों पक्षों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई है।

देहरादून निवासी अलमासुद्दीन सिद्दीकी ने भी इन प्रावधानों को चुनौती दी है। अन्य याचिकाएं लाइव-इन रिलेशनशिप को भंग करने की आसान प्रक्रिया पर केंद्रित हैं।

तलाक बनाम लाइव-इन संबंध विघटन: बड़ा अंतर

याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यूसीसी लिव-इन रिलेशनशिप को रजिस्ट्रार को एक साधारण लिखित अनुरोध (Simple Written Request) भेजकर महज 15 दिनों की प्रक्रिया में भंग करने की अनुमति देता है। वहीं, औपचारिक विवाहों को विघटित करने के लिए एक न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) से गुजरना पड़ता है, जिसमें वर्षों लग सकते हैं और इसमें गुजारा भत्ता (Maintenance Obligations) जैसी जिम्मेदारियां शामिल होती हैं।

याचिकाकर्ताओं का दावा है कि यह प्रावधान अलगाव की आसानी को देखते हुए लोगों को विवाह के बजाय लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship vs Marriage) चुनने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। इससे विवाह संस्था (Marriage Institution) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

संवैधानिक सवालों पर होगी गहन पड़ताल

उत्तराखंड देश का ऐसा पहला राज्य बना था जहां विधानसभा चुनावों से पहले यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code in Uttarakhand) लागू किया गया था। इस कानून का उद्देश्य राज्य में सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में एक समान कानून (Common Law for Personal Matters) लागू करना है।

हालांकि, विपक्ष और सामाजिक संगठनों ने इसमें लिव-इन रिलेशनशिप को विनियमित (Regulate Live-in Relationships) करने, उन्हें पंजीकृत (Mandatory Registration) कराने और उन्हें भंग करने की सरलीकृत प्रक्रिया का विरोध किया है। आलोचकों का मानना है कि यह प्रावधान व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Freedom) में हस्तक्षेप करते हैं और पारंपरिक पारिवारिक ढांचे को कमजोर कर सकते हैं।

अदालत ने इन सभी महत्वपूर्ण याचिकाओं पर अगली सुनवाई 10 नवंबर के लिए निर्धारित की है, जहां इन संवैधानिक और सामाजिक प्रश्नों (Constitutional and Social Questions) पर गहन विचार होने की उम्मीद है। इस सुनवाई का परिणाम न केवल उत्तराखंड, बल्कि अन्य राज्यों में भी यूसीसी की भविष्य की राह तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।