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ISRO की डरावनी रिपोर्ट; उत्तराखंड देश का सबसे डेंजर जोन, केदारनाथ हाईवे पर गंभीर खतरा

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की नवीनतम रिपोर्ट ने उत्तराखंड को भूस्खलन के लिहाज से देश का सबसे खतरनाक क्षेत्र घोषित कर दिया है। ‘लैंडस्लाइड एटलस ऑफ इंडिया’ नामक इस रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि 2023 के बाद 2025 में भी उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले ने देशभर में सबसे अधिक भू-धंसाव प्रभावित जिलों की सूची में शीर्ष स्थान हासिल कर लिया है। टिहरी गढ़वाल दूसरे नंबर पर है, जबकि केरल के त्रिशूर जिले को तीसरा स्थान मिला है।

रुद्रप्रयाग में 51 डेंजर जोन, केदारनाथ हाईवे पर गंभीर खतरा

रिपोर्ट के अनुसार, रुद्रप्रयाग जिला अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया गया है, जहां भूगर्भीय परिवर्तन तेजी से हो रहे हैं। जिले में कुल 51 खतरे वाले जोन हैं, जिनमें केदारनाथ हाईवे समेत कई महत्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं। जवाड़ी बाईपास पर तीन प्रमुख स्थानों पर गहरा भू-धंसाव दर्ज किया गया है, और इस वर्ष अब तक 13 नए भूस्खलन प्रभावित जोन सामने आ चुके हैं। इनमें से कई स्थानों पर अस्थायी मरम्मत कार्य चल रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि स्थिति और गंभीर हो सकती है।

राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण विभाग (लोनिवि) के अधिशासी अभियंता ओंकार पांडेय ने बताया, “भूगर्भीय विशेषज्ञों की चेतावनी के मुताबिक, जिले में लगातार आपदाएं हो रही हैं, जिनसे भारी जनहानि भी हुई है। यह स्थिति रुद्रप्रयाग को भूस्खलन के मामले में देश का सबसे संवेदनशील और जोखिम भरा क्षेत्र बना रही है।”

हिमालयी दरारें और दबाव बढ़ने से खतरा, विशेष

ढ़वाल विश्वविद्यालय के भूवैज्ञानिक डॉ. एसपी सती ने इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “हिमालय क्षेत्र में लंबी दरारें विकसित हो रही हैं और मंदाकिनी घाटी में तिब्बत की ओर बढ़ते दबाव से भूस्खलन की घटनाएं बढ़ गई हैं। बड़े पैमाने पर निर्माण कार्यों से यहां खतरा और गहरा सकता है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सुरक्षा और आपदा प्रबंधन के सख्त उपाय उठाने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य की आपदाओं से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके।”

इसरो की यह रिपोर्ट देशभर में भूस्खलन की घटनाओं का विश्लेषण करती है और सैटेलाइट इमेजरी के आधार पर जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करती है। उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों में भूस्खलन प्राकृतिक आपदाओं का प्रमुख कारण बने हुए हैं, जो पर्यटन, बुनियादी ढांचे और स्थानीय जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। विशेषज्ञों का सुझाव है कि केदारनाथ जैसे तीर्थस्थलों तक पहुंचने वाले मार्गों पर निगरानी बढ़ाई जाए और दीर्घकालिक समाधान अपनाए जाएं।