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उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कॉर्बेट पूर्व निदेशक के खिलाफ अभियोजन पर लगाई रोक, राज्य और CBI को नोटिस जारी

देहरादून: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मंगलवार को कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के पूर्व निदेशक के खिलाफ राज्य सरकार के अभियोजन स्वीकृति (Prosecution Sanction) आदेश पर रोक लगा दी है। यह मामला टाइगर सफारी परियोजना के लिए, रिजर्व के बफर जोन (Buffer Zone) में अवैध वृक्ष कटाई और अनधिकृत निर्माण से जुड़ी CBI की जांच से संबंधित है।

कोर्ट ने दिया अंतरिम राहत

न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की एकल पीठ ने इस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए 2004 बैच के आईएफएस अधिकारी राहुल को अंतरिम राहत प्रदान की। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में “महत्वपूर्ण सवाल” शामिल हैं, जो बिना किसी नए सबूत के पहले के फैसले की समीक्षा करने के अधिकार की क्षमता से संबंधित हैं।

अदालत ने निर्देश दिया कि 16 सितंबर के अभियोजन स्वीकृति आदेश का संचालन, कार्यान्वयन और प्रभाव अगली सुनवाई तक स्थगित रहेगा और याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई जबरदस्ती की कार्रवाई नहीं की जाएगी। राज्य सरकार और CBI को चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब हलफनामा दाखिल करने को कहा गया है।

क्या है पूरा मामला?

16 सितंबर को, उत्तराखंड सरकार ने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व (Corbett Tiger Reserve) के बफर जोन में टाइगर सफारी प्रोजेक्ट (Tiger Safari Project) से जुड़े अवैध वृक्ष कटाई (Illegal Tree Felling) और अनधिकृत निर्माण (Unauthorised Construction) में alleged भूमिका के लिए पूर्व निदेशक के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी दी थी। यह कदम सुप्रीम कोर्ट द्वारा अधिकारी राहुल के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी देने से इनकार करने पर, राज्य की आलोचना के एक सप्ताह बाद आया था।

राज्य वन विभाग के संयुक्त सचिव सत्यप्रकाश सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने जवाब में कहा था, “इस बात का सम्मानपूर्वक खंडन करते हुए कि मंजूरी देने से इनकार करने का पहले का फैसला एक बोनाफाइड फैसला था, राज्य सरकार ने अब CBI द्वारा अनुरोध किए जाने पर श्री राहुल के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी देने का एक सचेत निर्णय लिया है।”

इसके बाद, राहुल ने 16 सितंबर के आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की।

वकीलों के तर्क

याचिकाकर्ता के वकील दुष्यंत मैनाली ने तर्क दिया कि, आपत्तिजनक मंजूरी आदेश स्थापित कानूनी सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए, और अधिकार क्षेत्र के बिना, पारित किया गया था। मैनाली ने कहा, “हमने दावा किया कि अधिकारी एक बार फंक्टस ऑफिसियो (Functus Officio) हो गया, जब राज्य सरकार ने पहले 4 अगस्त को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। हमने यह भी जोर देकर कहा कि बिना किसी नए सबूत या विकास के, उसी सामग्री पर बाद के फैसले को पलटना, प्राथमिक रूप से अवैध था, खासकर जब से CBI ने शुरुआती इनकार को चुनौती नहीं दी थी, जिससे वह अंतिम हो गया।”

वहीं, CBI की तरफ से पेश वकील पियुष गर्ग ने तर्क दिया कि इस स्तर पर सुरक्षा प्रदान करना वास्तव में पूरे अभियोजन पर रोक लगाने के बराबर होगा। गर्ग ने कहा कि आपत्तिजनक आदेश संबंधित सामग्रियों और सक्षम प्राधिकारी से कानूनी राय पर विचार करने के बाद due application of mind के साथ पारित किया गया था।

अदालत का महत्वपूर्ण अवलोकन

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि उठाए गए मुद्दे, जिनमें बिना किसी नई सामग्री के मंजूरी को पलटने की कानूनी मजबूती शामिल है, गहन जांच के पात्र हैं। अदालत ने देखा कि रिट याचिका “दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 197 की शक्ति के दायरे और ambit तथा सार्वजनिक सेवकों के लिए उपलब्ध प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों” के बारे में पर्याप्त सवाल उठाती है।

अदालत ने कहा, “चूंकि ये मुद्दे अभियोजन की बनाए रखने की क्षमता की जड़ पर प्रहार करते हैं, इसलिए इन सवालों का अंतिम निर्णय होने तक आपत्तिजनक आदेश के संचालन पर रोक लगाना उचित होगा।”

कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 11 दिसंबर के लिए तय की है और स्पष्ट किया कि उसने मामले की तथ्यात्मक योग्यता पर कोई राय व्यक्त नहीं की है।