हरियाणा के कलेसर राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य में हाल ही में किए गए एक पक्षी सर्वेक्षण ने पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं। इस सर्वेक्षण में कई संकटग्रस्त और दुर्लभ पक्षी प्रजातियों की उपस्थिति दर्ज की गई है, जो न केवल हरियाणा बल्कि पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के लिए भी एक उत्साहजनक खबर है। यह खोज इस क्षेत्र के शेरजंग नेशनल पार्क (हिमाचल प्रदेश) और राजाजी नेशनल पार्क (उत्तराखंड) के साथ पारिस्थितिक जुड़ाव को और मजबूत करती है।
हाथी, बाघ के बाद अब पक्षियों की आवाजाही भी दर्ज
यह क्षेत्र पहले से ही बाघ और हाथियों जैसी वन्यजीव प्रजातियों की आवाजाही के लिए जाना जाता है। अब, उत्तराखंड के राजाजी नेशनल पार्क के साथ मिलकर, यह एक त्रिकोणीय वन्यजीव गलियारा बनता जा रहा है, जहां हाथियों, किंग कोबरा और बाघों के बाद अब विभिन्न पक्षी प्रजातियों की महत्वपूर्ण उपस्थिति भी दर्ज की गई है। अतीत में भी, हिमाचल में बाघों की उपस्थिति के कुछ समय बाद कलेसर में भी उनकी गतिविधियां देखी गई थीं, जो इस पारिस्थितिक जुड़ाव को प्रमाणित करता है।
जैव विविधता और इको-टूरिज्म के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र
इस त्रिकोणीय गलियारे में संकटग्रस्त पक्षियों की नई प्रजातियों की उपस्थिति इस क्षेत्र को जैव विविधता, वन्यजीव अनुसंधान और इको-टूरिज्म के दृष्टिकोण से और भी महत्वपूर्ण बनाती है। यदि संरक्षण के प्रयास इसी दिशा में जारी रहते हैं, तो इन तीनों राज्यों में फैली खैर वन संपदा आने वाले वर्षों में एक अद्वितीय जैविक विरासत के रूप में स्थापित हो सकती है।
पक्षी विशेषज्ञ टीके रॉय के नेतृत्व में महत्वपूर्ण सर्वेक्षण
मार्च 2025 में कलेसर नेशनल पार्क में यह महत्वपूर्ण पक्षी सर्वेक्षण देश के जाने-माने पक्षी विशेषज्ञ और पारिस्थितिकी एक्सपर्ट टीके रॉय के नेतृत्व में आयोजित किया गया था। वर्तमान में एशियाई वॉटरबर्ड सेंसस (AWC) के दिल्ली समन्वयक के रूप में कार्यरत रॉय ने हरियाणा के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डॉ. विवेक सक्सेना के निर्देश पर इस अध्ययन का संचालन किया।
कलेसर में 42 प्रजातियां, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत 7 संकटग्रस्त
एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क से बात करते हुए, पक्षी विशेषज्ञ टीके रॉय ने बताया कि कलेसर नेशनल पार्क और कलेसर वन्यजीव अभयारण्य में किए गए पक्षी सर्वेक्षण ने इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता को उजागर किया है। ताजा आंकड़ों के अनुसार, नेशनल पार्क में कुल 42 पक्षी प्रजातियां पाई गईं, जिनमें 31 स्थानीय और 11 प्रवासी प्रजातियां शामिल हैं। इनमें से 7 प्रजातियां वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA), IUCN और CITES के तहत संकटग्रस्त श्रेणी में आती हैं।
वन्यजीव अभयारण्य में और भी अधिक विविधता, 8 संकटग्रस्त प्रजातियां दर्ज
उन्होंने आगे जानकारी दी कि वन्यजीव अभयारण्य में पक्षियों की और भी अधिक विविधता देखने को मिली, जहां कुल 61 प्रजातियां दर्ज की गईं, जिनमें 20 स्थानीय और 18 प्रवासी पक्षी शामिल हैं। यहां 8 प्रजातियां वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA), 2 इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) रेड लिस्ट और 2 लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार से संबंधित सम्मेलन (CITES) सूची में पाई गईं।
हिमाचल-उत्तराखंड में भी उपस्थिति की प्रबल संभावना
एक महत्वपूर्ण बात पर जोर देते हुए टीके रॉय ने कहा कि पक्षियों की कोई भौगोलिक सीमा नहीं होती है और पूरी संभावना है कि कलेसर में पाई गई ये प्रजातियां उड़ान भरकर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की सीमाओं में भी जा रही होंगी।
महत्वपूर्ण संकटग्रस्त प्रजातियों की उपस्थिति दर्ज
इस अध्ययन में कॉमन ग्रीनशेंक, रिवर लाप विंग, चेस्टनट-हेडेड बी-ईटर, क्रेस्टेड सर्पेंट ईगल, चेंजेबल हॉक ईगल, शिकरा, ओरिएंटल पाइड हॉर्नबिल, इजिप्शियन वल्चर और यूरेशियन ग्रिफॉन वल्चर जैसी महत्वपूर्ण प्रजातियों की उपस्थिति दर्ज की गई। कलेसर राष्ट्रीय उद्यान के संक्षिप्त सर्वेक्षण में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA) की अनुसूची-I और CITES के परिशिष्ट I और III के अंतर्गत संरक्षित सात संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियों की पहचान की गई।
कलेसर अभयारण्य में 12 संकटग्रस्त प्रजातियां, हिमाचल के लिए नई उम्मीद
इसके अतिरिक्त, कलेसर वन्यजीव अभयारण्य में 12 ऐसी संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियों की पहचान की गई है, जो WPA अनुसूची-I, IUCN रेड लिस्ट और CITES के विभिन्न परिशिष्टों में सूचीबद्ध हैं। कलेसर में इनकी उपस्थिति और शेरजंग के साथ पारिस्थितिक संबंध इस संभावना को बल देता है कि हिमाचल की दून घाटी भी इन संकटग्रस्त पक्षियों के लिए एक नया सुरक्षित ठिकाना बन सकती है।
त्रिकोणीय गलियारे की पुष्टि, क्षेत्रीय जैव विविधता को मिलेगी नई पहचान
उत्तराखंड का राजा जी नेशनल पार्क पहले से ही हिमाचल प्रदेश और हरियाणा के राष्ट्रीय उद्यानों से जुड़ा हुआ है, और अब पक्षियों की इस नई आवाजाही ने इस पारिस्थितिक संबंध को एक मजबूत त्रिकोणीय वन्यजीव गलियारे के रूप में और भी पुष्ट कर दिया है। हिमाचल में बाघों की गतिविधियों के बाद अब दुर्लभ पक्षी प्रजातियों की उपस्थिति इस क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन के लिए एक सुखद संकेत है और सिरमौर की दून घाटी को एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट के रूप में एक नई पहचान दिला सकती है।
यह स्पष्ट है कि वन्यजीवों के लिए कोई सीमा नहीं होती और जंगलों की जैव विविधता को जोड़ने वाले ये गलियारे भारत की बहुमूल्य हरियाली विरासत को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।