भारत में पटाखों का इतिहास
पटाखों (Firecrackers) का इतिहास दुनिया के साथ जुड़ा हुआ है और इसका आरम्भ चीन में हुआ माना जाता है। चीन में हजारों साल पहले से आग और धमाके वाले उपकरणों का प्रयोग त्योहारों और सामुदायिक उत्सवों के लिए होता आया है; यहीं से बार-बार प्रयोग और संशोधन होते-होते बंदूक़ी और मनोरंजक आतिशबाज़ी का विकास हुआ। यह इतिहास और तकनीकी विकास; अनेक मान्यता प्राप्त स्रोतों में दर्ज है।
भारत में आतिशबाज़ी का आगमन
भारत में सटीक तारीख़ बताना कठिन है, पर शोध बताते हैं कि बंदूकों और बारूद-संबंधी तकनीकियाँ चीन से एशिया के रास्तों से फैलती रहीं और 13वीं शताब्दी के बाद गनपाउडर (Gunpowder) व रॉकेट जैसी तकनीकें भारत में पहुँचीं। इन तकनीकों के स्थानीय उपयोग ने धीरे-धीरे युद्ध-कौशल के साथ-साथ उत्सवों में रोशनी और धमाके के रूप में भी जगह बनाई।
सिवकासी: भारत का पटाखा नगर
भारत में आधुनिक पैमाने पर पटाखा-उद्योग का सबसे बड़ा केंद्र सिवकासी (Sivakasi) है। सिवकासी ने 20वीं सदी की शुरुआत से माचिस और छोटे आतिशबाज़ी उत्पादों का उत्पादन शुरू किया। स्थानीय उद्यमियों ने विदेशों से तकनीक सीखकर पटाखा-निर्माण को बढ़ाया। आज सिवकासी देश का प्रमुख उत्पादन केंद्र है और बड़ी मात्रा में पटाखों की आपूर्ति यहीं से होती है।

हालाँकि, सिवकासी की फैक्ट्रियों में समय-समय पर सुरक्षा हादसे भी हुए हैं, जिससे सुरक्षा नियमों की कमी पर चिंताएँ उठती रही हैं।
दिवाली और सांस्कृतिक जुड़ाव
दिवाली (Diwali) के साथ पटाखों का संबंध प्रतीकात्मक और सांस्कृतिक रूप से जुड़ा है। रोशनी और धमाके को बुराई पर अच्छाई की जीत और उल्लास के प्रतीक के रूप में देखा गया है।
परंतु आधुनिक दौर में वैज्ञानिक और पर्यावरणीय अध्ययन बताते हैं कि पटाखों के जलने से धुआँ, सूक्ष्म कण (PM2.5/PM10) और हानिकारक रसायन वायु में बढ़ जाते हैं। इससे वायु प्रदूषण (Air Pollution) और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ बढ़ती हैं। इसी कारण सुप्रीम कोर्ट और पर्यावरण निकायों ने बिक्री व विस्फोट पर नियंत्रण के आदेश दिए हैं। साथ ही “ग्रीन क्रैकर्स (Green Crackers)” जैसे विकल्पों पर भी जोर दिया जा रहा है।
विशेषज्ञों और शोध की राय
- इतिहासकारों के अनुसार, पटाखों का उद्गम चीन में हुआ और यह व्यापार मार्गों से भारत पहुँचा।
- आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि सिवकासी का मौसम, कच्चा माल और उद्यमशीलता इसकी सफलता के प्रमुख कारण हैं।
- पर्यावरण वैज्ञानिकों का मत है कि पटाखों से निकलने वाले रासायनिक तत्व हवा में विषैले स्तर को बढ़ाते हैं।
- अदालतों और नीति-निर्माताओं ने नियंत्रित समय और सुरक्षित विकल्पों की सिफारिश की है।
निष्कर्ष
पटाखों का इतिहास बहुआयामी है — इसमें सांस्कृतिक परंपरा, तकनीकी विकास और औद्योगिक उद्यम सब शामिल हैं। आज आवश्यकता है कि उत्सव की परंपरा और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन बनाया जाए। सुरक्षित विनिर्माण, सीमित समय में उपयोग और कम धुआँ उत्पन्न करने वाले ग्रीन विकल्प ही आने वाले समय की दिशा हैं।
स्रोत (Sources)
- Encyclopaedia Britannica — “Firework” (इतिहास व मूल)।
- History of Gunpowder / Spread to India (मध्यकालीन तकनीक)।
- Sivakasi — उद्योग और स्थानीय इतिहास संबंधी अध्ययन।
- Wikipedia: Firecracker Industry in India.
- Environmental Research — PMC/NIH (पटाखों से प्रदूषण संबंधी अध्ययन)।
- The Indian Express — “Hardlook: Green Crackers and Reality”.
- Hindustan Times — सुप्रीम कोर्ट और पटाखों पर हालिया आदेश।


