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उत्तराखंड विधानसभा का रिकॉर्ड: देश में सबसे कम बैठक की और सबसे कम अवधि तक चली

देहरादून: (Kafal Tree Live Uttarakhand News)उत्तराखंड अपने गठन के 25 वर्ष पूरे करने जा रहा है, लेकिन इसी बीच राज्य विधानसभा की कार्यप्रणाली पर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। देहरादून स्थित संस्था एसडीसी फाउंडेशन द्वारा जारी ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, उत्तराखंड विधानसभा देश की सबसे कम सक्रिय विधानसभाओं में शामिल है।

फाउंडेशन की रिपोर्ट “Comparative Performance of Uttarakhand Assembly: Gaps and Challenges” (उत्तराखंड विधानसभा का तुलनात्मक प्रदर्शन: अंतर और चुनौतियाँ) में बताया गया है कि 2024 में भारत के 31 राज्यों की विधानसभाओं ने औसतन 20 दिन बैठक की, जबकि उत्तराखंड में यह संख्या मात्र 10 दिन रही। कुल सत्र अवधि की बात करें तो उत्तराखंड विधानसभा ने पूरे साल में सिर्फ 60 घंटे बैठक की, जिससे यह 28 राज्यों में 22वें स्थान पर रही।

एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने कहा, “यह गंभीर चिंता का विषय है कि उत्तराखंड विधानसभा की बैठकें न केवल सबसे कम हैं बल्कि उनकी अवधि भी अत्यंत सीमित है। लोकतंत्र की आत्मा जवाबदेही में बसती है, और जब जनप्रतिनिधि सालभर में मुश्किल से कुछ ही दिन मिलते हैं, तो यह शासन व्यवस्था और लोकतांत्रिक जिम्मेदारी दोनों के लिए संकट का संकेत है।”

रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में ओडिशा विधानसभा ने सबसे ज्यादा 42 दिन तक सत्र चलाया, जबकि केरल में 38 दिन और पश्चिम बंगाल में 36 दिन की बैठकें हुईं। इसके विपरीत, उत्तराखंड, पंजाब और अरुणाचल प्रदेश ने मात्र 10 दिन की बैठकें कीं, जिससे ये राज्य सूची के निचले पायदान पर रहे।(Kafal Tree Live Uttarakhand News)

यह स्थिति 2023 में भी अलग नहीं थी, जब उत्तराखंड विधानसभा ने पूरे साल में सिर्फ 7 दिन (44 घंटे) बैठक की थी — जो उस वर्ष देश में सबसे कम थी। 2017 से 2024 के बीच उत्तराखंड विधानसभा की औसत वार्षिक बैठक अवधि मात्र 12 दिन रही, जबकि तुलना में केरल में यह औसत 44 दिन और ओडिशा में 40 दिन रहा।

नौटियाल ने कहा कि विधानसभा सिर्फ औपचारिकता के लिए नहीं, बल्कि नीतिगत चर्चा, कानून निर्माण और जनहित के मुद्दों पर बहस का मंच है। उन्होंने सरकार की इस दलील को भी खारिज किया कि “हाउस के पास काम नहीं है”, यह कहते हुए कि “राज्य में सैकड़ों ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें नीति और विधायी हस्तक्षेप की जरूरत है।”

उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि आगामी 3 और 4 नवंबर को प्रस्तावित विशेष सत्र गैरसैंण के बजाय देहरादून में क्यों आयोजित किया जा रहा है। उनके अनुसार, यदि यह सत्र गैरसैंण में होता तो इसकी प्रतीकात्मक और लोकतांत्रिक महत्ता अधिक होती।

अंत में अनूप नौटियाल ने कहा कि उत्तराखंड को “उत्सव का राज्य” बनने के बजाय “जवाबदेही और कार्रवाई का राज्य” बनना होगा। उन्होंने कहा कि विधानसभा का भविष्य सिर्फ औपचारिक कार्यक्रमों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे जनता की वास्तविक भागीदारी और जवाबदेही का मंच बनना चाहिए।

(स्रोत: SDC Foundation रिपोर्ट, 2024)