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वैज्ञानिकों की चेतावनी: तय सीमा से अधिक श्रद्धालु, चारधाम के लिए असुरक्षित

उत्तराखंड के चार धाम तीर्थ स्थलों पर होने वाली भीड़ अब पर्यावरण और सुरक्षा की दृष्टि से एक गंभीर चुनौती बनती जा रही है। वैज्ञानिकों ने पहली बार इन नाजुक हिमालयी स्थलों के लिए एक दिन में आने वाले श्रद्धालुओं की अधिकतम सुरक्षित सीमा (कैरींग कैपेसिटी) का आकलन पेश किया है, जिससे पता चलता है कि मौजूदा तीर्थयात्री आवागमन पहले ही टिकाऊ सीमाओं को पार कर चुका हो सकता है।

क्या है सुरक्षित सीमा?

वैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार, चार धाम मार्ग पर प्रतिदिन आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षित सीमा इस प्रकार तय की गई है:

  • बदरीनाथ: लगभग 15,800 श्रद्धालु प्रतिदिन
  • केदारनाथ: लगभग 13,200 श्रद्धालु प्रतिदिन
  • गंगोत्री: लगभग 8,200 श्रद्धालु प्रतिदिन
  • यमुनोत्री: लगभग 6,200 श्रद्धालु प्रतिदिन

बढ़ रही है भीड़, बढ़ रहा है दबाव

उत्तराखंड पर्यटन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि साल 2022 में लगभग 40 लाख (4 मिलियन) तीर्थयात्रियों ने चार धाम की यात्रा की थी। अनुमान है कि 2025 तक यह संख्या बढ़कर 60 लाख (6 मिलियन) तक पहुंच सकती है। चूंकि ये स्थल अप्रैल से नवंबर तक ही खुलते हैं, इसलिए 40 लाख वार्षिक visitors का मतलब है प्रतिदिन औसतन 16,600 से अधिक श्रद्धालु। यह संख्या चरम सीजन के दौरान और भी अधिक बढ़ जाती है, जो वैज्ञानिकों द्वारा बताई गई सुरक्षित सीमा को पार कर सकती है।

बदलती जलवायु और बढ़ते खतरे

यह नया अध्ययन ऐसे समय में सामने आया है जब बढ़ती पर्यटक संख्या और विस्तारित हो रही इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं ने ग्लेशियर से पोषित इन पहाड़ी ढलानों और घाटियों पर दबाव बढ़ा दिया है। यह सब जलवायु परिवर्तन से जुड़ी लगातार आ रही चरम मौसमी घटनाओं की पृष्ठभूमि में हो रहा है। केवल साल 2025 में ही उत्तराखंड में कम से कम तीन बार अचानक आई बाढ़ की घटनाएं दर्ज की गई हैं – 5 अगस्त को धराली में, 23 अगस्त को थराली में और 15 सितंबर को देहरादून के सहस्त्रधारा और तापकेश्वर महादेव में।

चार धाम हाईवे विस्तार परियोजना और भूस्खलन का खतरा

साल 2016 में शुरू हुए चार धाम मार्ग के 889 किमी लंबे हाईवे को चौड़ा करने की केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना ने भी चिंताओं को बढ़ा दिया है। कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि निर्माण के तरीकों ने मार्ग के कुछ हिस्सों में भूस्खलन के खतरे को और बढ़ा दिया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस परियोजना की समीक्षा के लिए नियुक्त एक तकनीकी विशेषजण पैनल ने साल 2020 में ही आगाह किया था कि बदरीनाथ पहले ही अपनी वहन क्षमता तक पहुंच चुका हो सकता है और अन्य तीन स्थल इस दशक के मध्य तक पहुंच सकते हैं।

कैसे की गई अध्ययन?

इस नए अध्ययन में, वीसीएसजी उत्तराखंड यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री में प्रोफेसर और वन संसाधन प्रबंधन विभाग के अध्यक्ष जगदीश चंद्र कुनियाल और उनके सहयोगियों ने प्रत्येक स्थल पर टिकाऊ तीर्थयात्री आवागमन के लिए वहन क्षमता की गणना करने के लिए स्थानिक, पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक डेटा को संयोजित किया। शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि प्रत्येक चार धाम स्थल प्रतिदिन कितने visitors को भौतिक रूप से समेट सकता है, फिर इन आंकड़ों को इलाके, पहुंच और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए मानचित्रों और सुधार कारकों का उपयोग करके समायोजित किया।

क्या है समाधान?

वैज्ञानिकों ने आगे की राह भी सुझाई है। उन्होंने आगंतुकों के प्रवाह के “विकेंद्रीकरण” का आह्वान किया है, जिसके तहत आस-पास के “उपग्रह स्थानों” (Satellite Locations) को विकसित करने पर जोर दिया गया है। इससे इलाके की पारिस्थितिक सुरक्षा और स्थानीय समुदायों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी। अध्ययन में ऐसे उपग्रह क्षेत्रों की पहचान भी की गई है – वनस्पति आवरण, ढलान और ऊंचाई के आधार पर – जिन्हें पर्यटकों के लिए भविष्य के स्थलों के रूप में विकसित किया जा सकता है।

प्रोफेसर कुनियाल ने स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा, “बादल फटने और अचानक बाढ़ के बढ़ते जोखिम को देखते हुए, यह महत्वपूर्ण है कि भविष्य में पर्यटन-संबंधी बुनियादी ढांचे का निर्माण नदी चैनलों के दोनों ओर 100 मीटर के दायरे से बाहर किया जाए।”

हालांकि, गंगा अवाहन, उत्तरकाशी के एक नागरिक फोरम की स्वयंसेवी मल्लिका भनोट का मानना है कि यह अध्ययन चार धाम मार्ग पर पर्यटन बढ़ाने की नीतियों को मार्गदर्शन देने के इरादे से किया गया प्रतीत होता है। उन्होंने कहा, “अधिक लोगों के चार धाम आने की व्यवस्था इस साल हमने जैसी आपदाएं देखीं, उनमें जानमाल के नुकसान का खतरा कई गुना बढ़ा देगी।”

स्पष्ट है कि चार धाम की पवित्र यात्रा को सुरक्षित और टिकाऊ बनाए रखने के लिए अब एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की सख्त जरूरत है, जहां आस्था और पर्यावरण का सामंजस्य बना रहे।