अगर आप हर मानसून में कोहरे से घिरे पहाड़ी इलाकों की सैर का प्लान बनाते हैं, तो यह खबर आपको दोबारा सोचने पर मजबूर कर देगी। एक ताज़ा अध्ययन में पश्चिमी घाट और पूर्वी हिमालय के बादलों में जहरीली धातुओं का खतरनाक स्तर पाया गया है। इनके संपर्क में आने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा पैदा हो सकता है।
‘साइंस एडवांसेज’ जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चलता है कि पूर्वी हिमालय के बादलों में सामान्य से डेढ़ गुना अधिक प्रदूषण है। इनमें जहरीली धातुओं जैसे कैडमियम (Cadmium – Cd), कॉपर (Copper – Cu) और जिंक (Zinc – Zn) की सांद्रता 40-60% तक अधिक पाई गई है। ये प्रदूषक कैंसरकारी (Carcinogenic) और गैर-कैंसरकारी (Non-carcinogenic) दोनों तरह के स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं।
अध्ययन में चेतावनी दी गई है, “इन जहरीली धातुओं के लंबे समय तक संपर्क में रहने से किडनी, लीवर, फेफड़े, दिमाग और हृदय प्रणाली को प्रभावित करने वाली पुरानी बीमारियां हो सकती हैं।” अध्ययन के मुताबिक, “क्रोमियम (Chromium – Cr) के साँस लेने से अस्थमा, निमोनिया और ब्रोंकाइटिस जैसी गैर-कैंसरकारी बीमारियां जुड़ी हैं। हालांकि, कैडमियम (Cd), क्रोमियम (Cr) और निकल (Nickel – Ni) के लंबे समय तक सेवन से इंसानों में फेफड़ों के कैंसर का खतरा काफी बढ़ जाता है।”
बच्चे विशेष रूप से ज्यादा असुरक्षित हैं। अध्ययन से पता चला है कि भारत में बच्चों के इन जहरीली धातुओं की चपेट में आने का खतरा वयस्कों की तुलना में 30% अधिक है।
अध्ययन कैसे किया गया?
इस अध्ययन में विश्लेषण के लिए बादलों के पानी के नमूने महाबलेश्वर (पश्चिमी घाट) और दार्जिलिंग (पूर्वी हिमालय) से एकत्र किए गए। ये नमूने उन बादलों से लिए गए जिनसे उस समय बारिश नहीं हो रही थी। पाया गया कि ये बादल क्षारीय (Alkaline) थे, जिनका पीएच मान महाबलेश्वर में 6.2 से 6.8 और दार्जिलिंग में 6.5 से 7.0 के बीच था।
आखिर इस प्रदूषण की वजह क्या है?
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के तहत स्वायत्त संस्थान बोस इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं के अनुसार, इस संदूषण के पीछे मुख्य रूप से यातायात के उत्सर्जन, जीवाश्म ईंधन के जलने और शहरी कचरे को जलाना जिम्मेदार है। सड़क की धूल और मिट्टी का कटाव भी बादलों में इन जहरीली धातुओं के जमाव में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
ये नतीजे मानसून के मौसम में इन शांत और सुरम्य पहाड़ी इलाकों में लंबा समय बिताने के दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। अगली बार जब आप प्रकृति की गोद में जाने का प्लान बनाएं, तो यह जान लें कि आपके आसपास का कोहरा शायद उतना निर्मल नहीं है, जितना दिखता है।
स्रोत: Science Advances Journal


