भारतीय सेना द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पीओके स्थित आतंकी शिविरों पर की गई सर्जिकल कार्रवाई के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम निर्णय सुनाया। कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि महिला सैन्य अधिकारियों को फिलहाल सेवामुक्त न किया जाए, खासकर उन्हें जिन्होंने स्थायी कमीशन (Permanent Commission) न दिए जाने को चुनौती दी है।
“इस समय उनके साथ खड़े होने की जरूरत”: सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह टिप्पणी की कि मौजूदा हालातों—जहां भारत-पाक तनाव चरम पर है—के मद्देनज़र सेना को अपने सभी अनुभवी और प्रशिक्षित अधिकारियों की जरूरत है। यह समय है जब हमें उनके साथ खड़ा होना चाहिए, न कि उन्हें अदालतों के चक्कर कटवाने के लिए छोड़ देना चाहिए, जस्टिस सूर्यकांत ने कहा।
उन्होंने कहा कि इन महिला अधिकारियों को सेवामुक्त कर देना न केवल न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ होगा, बल्कि इससे देश के सैन्य मनोबल पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई 6 अगस्त को होगी और तब तक किसी भी महिला अधिकारी को सेवामुक्त नहीं किया जाएगा।
गीता शर्मा के मामले से उठी बहस
सुनवाई के दौरान मुख्य रूप से लेफ्टिनेंट कर्नल गीता शर्मा के मामले पर चर्चा हुई, जिन्हें 9 जून को सेवामुक्त किया जाना था, लेकिन उन्हें 17 मार्च को ही कार्यमुक्त कर दिया गया। इसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। कोर्ट ने कहा कि यह समय अधिकारियों को मुकदमेबाजी में उलझाने का नहीं है, बल्कि उनकी सेवाएं युद्ध-स्तर की स्थिति में अधिक महत्वपूर्ण हैं।
महिलाओं की भूमिका को मिल रहा विस्तार
इस मामले की पैरवी कर रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने सुनवाई के दौरान कर्नल सोफिया कुरैशी के उदाहरण का उल्लेख किया। कर्नल कुरैशी वर्तमान में पाकिस्तान के साथ चल रहे संघर्ष की ब्रीफिंग का नेतृत्व कर रही हैं। यह वही महिला अधिकारी हैं जिनके केस में पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया था। जस्टिस सूर्यकांत ने इस पर सहमति जताते हुए कहा आज हमें इन अधिकारियों की नैतिक शक्ति और व्यावसायिक दक्षता पर सबसे अधिक भरोसा है। ये सभी अधिकारी पूर्ण रूप से योग्य हैं।
केंद्र सरकार की आपत्ति और कोर्ट की प्रतिक्रिया
केंद्र सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) भाटी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि सेना को युवा अधिकारी चाहिए और हर साल केवल 250 अधिकारियों को ही स्थायी कमीशन मिल पाता है। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि सेवामुक्ति पर रोक न लगाई जाए।
हालांकि, कोर्ट ने यह तर्क अस्वीकार कर दिया और कहा कि मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा के हालातों में यह कदम अनुचित होगा। सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि महिला अधिकारियों को ‘बड़े और बेहतर स्थानों’ पर सेवा में बनाए रखना वक्त की मांग है।
2020 का ऐतिहासिक निर्णय भी आया चर्चा में
सुनवाई के दौरान 17 फरवरी 2020 को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भी चर्चा हुई, जिसमें कोर्ट ने सेना में महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन का रास्ता साफ किया था।
तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेना में महिलाओं को पूरी तरह बाहर रखने का कदम असंवैधानिक है और कमान पदों से उन्हें वंचित करना समानता के अधिकार के खिलाफ है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सामाजिक मान्यताओं और शारीरिक सीमाओं का हवाला देकर महिलाओं को अवसरों से वंचित करना अनुचित है।
देश के लिए समर्पण सर्वोपरि
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि देश जब संघर्ष की स्थिति में है, तब हर योग्य अधिकारी का योगदान मूल्यवान है, चाहे वह पुरुष हो या महिला। कोर्ट ने कहा, “हम सभी को सेना के योगदान पर गर्व है। यह वह समय है जब उनका मनोबल गिराना नहीं, बल्कि उन्हें सम्मान देना जरूरी है।