भारत की सेवानिवृत्ति व्यवस्था को एक बार फिर बड़ा झटका लगा है। मर्सर और सीएफए इंस्टीट्यूट की ओर से जारी ताजा वैश्विक पेंशन सूचकांक 2025 (Global Pension Index 2025) में भारत को एक बार फिर मात्र 43.8 अंक के साथ ‘D’ ग्रेड हासिल हुआ है। यह स्कोर भारत को दुनिया की सबसे कमजोर पेंशन प्रणालियों वाले देशों की श्रेणी में ला खड़ा करता है।
क्या कहता है ग्लोबल पेंशन इंडेक्स?
यह रिपोर्ट दुनिया की 52 देशों की पेंशन प्रणालियों का आकलन करती है, जो दुनिया की लगभग 65% आबादी को कवर करती हैं। इस सूची में सबसे ऊपर नीदरलैंड, आइसलैंड, डेनमार्क, सिंगापुर और इजराइल जैसे देश हैं, जबकि निचले पायदान पर भारत, फिलीपींस और थाईलैंड का स्थान है। शीर्ष देशों का स्कोर 85 से ऊपर है, जबकि भारत का 43.8 का स्कोर इसे ‘D’ कैटेगरी में रखने के लिए काफी है।
किन वजहों से पिछड़ रहा है भारत?
रिपोर्ट पेंशन सिस्टम को तीन मुख्य स्तंभों में बांटकर देखती है: पर्याप्तता (Adequacy), सततता (Sustainability), और अखंडता (Integrity)। आइए इन तीनों पहलुओं पर भारत की स्थिति को समझते हैं।
1. पर्याप्तता (Adequacy) – कमजोर
इसका मतलब है कि सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाली पेंशन की रकम किसी व्यक्ति की जरूरतों के मुकाबले कितनी है। भारत में पेंशन लाभ सेवानिवृत्ति की जरूरतों के मुकाबले बहुत कम हैं। देश के कर्मचारियों का एक बहुत बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र में काम करता है और उनके पास कोई सार्थक पेंशन कवरेज नहीं है।
2. सततता (Sustainability) – खराब
बढ़ती उम्र की आबादी और सरकार पर मंडराते राजकोषीय दबाव के चलते, भारत की पेंशन प्रणाली भविष्य में पेंशन के भुगतान को सुनिश्चित करने के मोर्चे पर संघर्ष कर रही है। बिनर सुधारों के यह सिस्टम भविष्य में लोगों को पेंशन दे पाने में सक्षम नहीं होगा।
3. अखंडता (Integrity) – मध्यम
इसमें पेंशन फंड के प्रबंधन, पारदर्शिता और नियमन को देखा जाता है। भारत में इस मोर्चे पर सुधार हुआ है, लेकिन फिर भी यह दुनिया के बेहतरीन सिस्टम से पीछे है। निजी पेंशन फंडों पर नियामक निगरानी को और मजबूत करने की जरूरत है।
सिंगापुर जैसे देश क्यों हैं सफल?
इस रिपोर्ट में सिंगापुर 86 अंकों के साथ लगातार दूसरे साल शीर्ष पर रहा। उसकी सेंट्रल प्रोविडेंट फंड (CPF) योजना लगभग हर कर्मचारी को कवर करती है और यह सेवानिवृत्ति, स्वास्थ्य देखभाल और आवास के लिए बचत की सुविधा देती है। इसके साथ ही इसमें रिटर्न की गारंटी होती है और सरकारी कर्ज न्यूनतम होता है। यह एक टिकाऊ पेंशन प्रणाली बनाने का आदर्श उदाहरण है।
भारत अपनी स्थिति कैसे सुधार सकता है?
मर्सर और सीएफए इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को अपना स्कोर सुधारने के लिए चार मुख्य कदम उठाने चाहिए:
- सबसे गरीब बुजुर्गों के लिए न्यूनतम आय की गारंटी: देश के सबसे गरीब और जरूरतमंद बुजुर्गों के लिए एक न्यूनतम आय की व्यवस्था शुरू करनी चाहिए।
- असंगठित और गिग वर्कर्स को पेंशन के दायरे में लाना: असंगठित क्षेत्र और गिग इकॉनमी में काम करने वाले लोगों के लिए पेंशन योजनाओं का दायरा बढ़ाना होगा।
- बचत को सुरक्षित रखने के लिए न्यूनतम सेवानिवृत्ति आयु तय करना: बढ़ती उम्मीद को देखते हुए सेवानिवृत्ति की न्यूनतम आयु तय करनी चाहिए ताकि लोगों की बचत लंबे समय तक चल सके।
- निजी पेंशन फंडों के लिए नियमन और शासन को मजबूत करना: निजी क्षेत्र के पेंशन फंडों पर नजर रखने वाली संस्थाओं की नियामक शक्तियों को मजबूत करना जरूरी है।
आने वाले कल के लिए एक चेतावनी
वैश्विक स्तर पर पेंशन संपत्ति 2024 में 10% बढ़कर लगभग 63 ट्रिलियन डॉलर हो गई, लेकिन भारत की प्रगति ठप पड़ी हुई है। नई स्थिरता मानदंडों के कारण इसका स्कोर पिछले साल के 44 से घटकर 43.8 पर आ गया है। तुलनात्मक रूप से, अमेरिका 30वें, ब्रिटेन 12वें, जापान 39वें और ऑस्ट्रेलिया 7वें स्थान पर है, जबकि भारत अभी भी सबसे निचले समूह में ही है।
साफ है कि भारत की पेंशन प्रणाली पूरी तरह टूटी हुई तो नहीं है, लेकिन यह दुनिया की तेज रफ्तार के सामने कमजोर साबित हो रही है। दुनिया की सबसे बड़ी उम्रदराज आबादी वाले देश के लिए, यह रिपोर्ट एक स्पष्ट संदेश देती है: बेहतर नियमन और टिकाऊ फंडिंग अब विकल्प नहीं, बल्कि जरूरत बन गई हैं। क्योंकि आज का ‘D’ ग्रेड, कल की सेवानिवृत्ति संकट की चेतावनी हो सकता है।


