देहरादून: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में बद्रीनाथ हाईवे पर लगातार हो रहे भूस्खलन और भू-कटाव से निपटने के लिए नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) ने एक नई तकनीक को अपनाया है। गौचर के कमेड़ा इलाके में हाईवे के एक अहम हिस्से को स्थिर करने के लिए अब ‘हाइड्रोसीडिंग’ नाम की बायोलॉजिकल तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसकी मदद से पहाड़ी ढलान पर घास और पौधे उगाकर उसे मजबूत बनाया जाएगा।
यह फैसला तब आया है जब पहले इस्तेमाल किए गए पारंपरिक इंजीनियरिंग के तरीके ढलान को बांधने में पूरी तरह कारगर साबित नहीं हुए। रुद्रप्रयाग देश के उन दस सबसे अधिक भूस्खलन-प्रवण जिलों में शामिल है, जहाँ यह समस्या लगातार बनी हुई है।
पांच साल से बरसात में हर बार टूटता है रास्ता
कमेड़ा के पास हाईवे का करीब 120-मीटर का यह हिस्सा मानसून के मौसम में काफी मलबा और पत्थर बहाकर लाता है। पिछले पांच साल से यहाँ की ढलान से मिट्टी, पत्थर और चट्टानें खिसककर हाईवे पर आ गिरती हैं, जिससे कई-कई घंटों के लिए यातायात ठप हो जाता है।
स्थानीय निवासियों का कहना है, “पिछले पांच साल से यह ढलान अस्थिर है। जैसे ही बारिश होती है, बड़ी-बड़ी चट्टानें हाईवे पर लुढ़क आती हैं और रास्ता बंद हो जाता है।“
पहले क्या उपाय किए गए?
इससे पहले, NHAI ने पारंपरिक तरीके से इस ढलान को मजबूत करने की कोशिश की थी। मानसून से पहले ढलान में 6 से 8 इंच लंबी लोहे की रॉड (एंकर) गाड़कर स्टील की जाली लगाई गई थी। मगर भारी बारिश के कारण मिट्टी खिसक गई और यह जाल बेअसर साबित हुई।
क्या है हाइड्रोसीडिंग तकनीक?
अब इस समस्या के समाधान के लिए ‘हाइड्रोसीडिंग मल्च’ तकनीक को चुना गया है। इस तकनीक में ढलान पर बीज, पानी, खाद और अन्य जरूरी चीजों के मिश्रण को एक खास मशीन से छिड़काव किया जाता है।
इस प्रोजेक्ट से जुड़े आरसीसी डेवलपर्स के प्रोजेक्ट मैनेजर जेपी शर्मा ने बताया, “इस खड़ी ढलान पर आगे भूस्खलन रोकने के लिए हम हाइड्रोसीडिंग मल्च का इस्तेमाल कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि यह तरीका कारगर साबित होगा।” उन्होंने आगे कहा, “हम इस तकनीक को पूरी तरह लागू करने से पहले मौजूदा एंकरों की जांच कर रहे हैं, क्योंकि पहाड़ी इलाकों में यह विधि सफल रही है।”
हाइड्रोसीडिंग एक ऐसी Advance बायो-इंजीनियरिंग तकनीक है जो पहाड़ी ढलानों, सड़कों के किनारे और खनन वाले इलाकों में तेजी से घास या वनस्पतियों की एक सुरक्षात्मक परत बना देती है। इसके मिश्रण में मल्च फाइबर होते हैं जो मिट्टी को एक साथ बांधते हैं और भारी बारिश या हवा से होने वाले कटाव को रोकते हैं। साथ ही, बीज अंकुरित होकर जड़ों का एक जीवित ढांचा तैयार करते हैं, जो दीर्घकालिक स्थिरता प्रदान करता है।
देश के सबसे संवेदनशील जिलों में शामिल है रुद्रप्रयाग
इस प्रोजेक्ट की जरूरत इसलिए भी अधिक है क्योंकि ताजा आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग और टिहरी गढ़वाल देश के टॉप 10 सबसे अधिक भूस्खलन-संभावित जिलों में शामिल हैं।
इस हाई-रिस्क वाली सूची में शामिल अन्य जिले हैं:
- केरल: त्रिशूर, पलक्कड़, मलप्पुरम और कोझिकोड।
- जम्मू-कश्मीर: राजौरी और पुंछ।
- सिक्किम: दक्षिण और पूर्वी सिक्किम।
NHAI को उम्मीद है कि यह जैविक हस्तक्षेप अगले मानसून सीजन आने से पहले बद्रीनाथ हाईवे के इस महत्वपूर्ण रास्ते को अंततः स्थिर कर देगा और यात्रियों के लिए सफर को सुरक्षित बना पाएगा।


