देहरादून के विकासनगर ब्लॉक स्थित राजकीय इंटर कॉलेज (GIC) मेदनीपुर, बद्रीपुर से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है। यहां 12वीं कक्षा के सभी 22 छात्र परीक्षा में फेल हो गए हैं। हैरानी की बात यह है कि इसी स्कूल की 10वीं कक्षा में 66 में से 62 छात्र-छात्राएं पास हुए हैं। यह विरोधाभास शिक्षा व्यवस्था, स्कूल प्रबंधन और पाठ्यक्रम योजना पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
पीसीएम ही एकमात्र विकल्प, छात्रों की मजबूरी
विद्यालय प्रबंधन के अनुसार, स्कूल में 12वीं कक्षा के लिए केवल विज्ञान संकाय (PCM) ही उपलब्ध है। इस कारण जिन छात्रों की रुचि कला विषयों में थी, उन्हें भी मजबूरी में विज्ञान विषय चुनना पड़ा। छात्रों की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के चलते वे दूसरे स्कूलों में विषय बदलने नहीं जा सके। स्कूल ने भी छात्र संख्या बरकरार रखने के लिए इन छात्रों को विज्ञान विषय में प्रवेश दे दिया।
छात्रों ने न तो विज्ञान विषय के लिए तैयारी की थी और न ही उन्हें इसमें रुचि थी, जिसके चलते पूरे बैच का परिणाम शून्य हो गया। जबकि 10वीं के विद्यार्थियों ने अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि समस्या छात्रों की योग्यता से अधिक पाठ्यक्रम चयन और व्यवस्था से जुड़ी है।
कला विषय की वर्षों से लंबित मांग
विद्यालय प्रबंधन का कहना है कि वर्ष 2016 से लगातार कला संकाय शुरू करने की मांग की जा रही है, लेकिन शिक्षा विभाग से अब तक कोई मंजूरी नहीं मिली है। पूरे ब्लॉक में यह अकेला ऐसा विद्यालय है, जहां कला विषयों का संचालन नहीं हो रहा। यदि यह विकल्प मौजूद होता, तो छात्रों को उनकी पसंद और क्षमता के अनुरूप विषय मिल सकते थे और परिणाम बेहतर हो सकता था।
100 से अधिक छात्र अन्य स्कूलों में चले गए
10वीं कक्षा पास करने के बाद करीब 100 से अधिक छात्र-छात्राएं अन्य स्कूलों में दाखिला लेकर अन्य विषयों की पढ़ाई कर रहे हैं। यह भी इस बात का संकेत है कि विषयों की सीमित उपलब्धता कैसे छात्रों को स्कूल बदलने या मजबूरी में विषय चुनने पर विवश करती है।
शिक्षा अधिकारियों की प्रतिक्रिया
मुख्य शिक्षा अधिकारी विनोद कुमार ढौंडियाल ने कहा कि जिन स्कूलों का परिणाम बेहद खराब रहा है, उन्हें नोटिस जारी किया जाएगा। GIC मेदनीपुर के विषय चयन की समस्या को संज्ञान में लिया गया है। उन्होंने आश्वासन दिया कि स्कूल में कला विषय शुरू करने के लिए प्रस्ताव भेजा जाएगा, ताकि छात्रों को उनकी क्षमता के अनुसार विषय चुनने का अवसर मिले।
यह मामला एक बार फिर शिक्षा व्यवस्था की जमीनी हकीकत उजागर करता है—जहां छात्रों की आकांक्षाएं और जरूरतें प्रणाली की कठोर सीमाओं में फंस कर रह जाती हैं। अगर समय रहते विषयों की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं की गई, तो ऐसे नतीजे और भी स्कूलों में देखने को मिल सकते हैं।