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उत्तराखंड वन निगम में 2.5 करोड़ का ‘कुक घोटाला’! 46 अधिकारियों पर सरकारी खजाने से रसोइयों के वेतन का गबन का आरोप

उत्तराखंड वन विकास निगम (Uttarakhand Forest Development Corporation) एक बार फिर एक बड़े घोटाले के कारण सुर्खियों में है। इस बार आरोप है सरकारी खजाने से अधिकारियों की निजी सुख-सुविधा का बिल चुकाने का। निगम के 46 वरिष्ठ अधिकारियों पर बिना किसी शासन अनुमति के अपने घरों में रसोइया (कुक) रखने और उनके वेतन का भुगतान सरकारी कोष से करने का गंभीर आरोप लगा है, जिससे राज्य के खजाने को लगभग 2.5 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।

क्या है पूरा मामला?

मामला वन विकास निगम के अधिकारियों द्वारा अपने निजी निवास पर काम करने के लिए रसोइयों (कुक) की नियुक्ति का है। शासन के नियमों के अनुसार, ऐसी किसी भी निजी सेवा के लिए सरकारी खजाने से भुगतान करने के लिए पूर्व अनुमति आवश्यक होती है। लेकिन इस मामले में, 46 अधिकारियों ने बिना किसी वैधानिक मंजूरी के यह कार्य किया।

हर महीने, प्रत्येक कुक के लिए 17,000 रुपये का मानदेय सरकारी खजाने से दिया जा रहा था। यह सिलसिला केवल कुछ महीनों का नहीं, बल्कि लगातार 34 महीनों तक चलता रहा। इस हिसाब से, हर महीने लगभग 7.82 लाख रुपये का अनधिकृत खर्च किया गया और कुल मिलाकर करीब 2.5 करोड़ रुपये का सरकारी धन डुबोया गया।

किन-किन अधिकारियों पर है आरोप?

निजी सेवा में कुक रखने वाले अधिकारियों की सूची में निगम के वरिष्ठ से लेकर मध्यम स्तर के अधिकारी शामिल हैं। इनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं:

  • 36 प्रभागीय लौंगिक अधिकारी (Divisional Forest Officers)
  • 04 क्षेत्रीय प्रबंधक (Regional Managers)
  • 04 प्रशासनिक अधिकारी (Administrative Officers)
  • 01 मुख्य लेखाधिकारी (Chief Accounts Officer)
  • 01 ईपीएफ लेखाधिकारी (EPF Accounts Officer)

इस सूची से स्पष्ट है कि यह घोटाला किसी एक या दो अधिकारियों की करतूत नहीं, बल्कि निगम के भीतर एक व्यापक और संगठित तरीके से चलने वाली अनियमितता का नतीजा है।

अब क्या होगा आगे?

इस गंभीर अनियमितता का खुलासा होने के बाद अब निगम के भीतर ही जांच की मांग उठ रही है। सवाल यह उठ रहे हैं कि इतने लंबे समय तक बिना अनुमति के चलने वाले इस खर्च पर निगम के वरिष्ठ अधिकारियों की नजर क्यों नहीं गई? क्या वित्तीय नियंत्रण व्यवस्था पूरी तरह से विफल रही?

इस घोटाले ने सरकारी विभागों में फिजूलखर्ची और नियमों की धज्जियां उड़ाने की संस्कृति पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। जनता का पैसा इस तरह निजी सुविधा पर उड़ाए जाने से आम नागरिकों में गहरी नाराजगी है। अब यह देखना होगा कि प्रशासन इस मामले में कितनी गंभीरता दिखाता है और दोषी पाए गए अधिकारियों के खिलाफ किस हद तक कार्रवाई की जाती है।

निष्कर्ष

उत्तराखंड वन विकास निगम का यह ‘कुक घोटाला’ सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार और जवाबदेही के अभाव का एक और काले अध्याय के रूप में सामने आया है। 2.5 करोड़ रुपये की यह रकम राज्य के विकास कार्यों में लग सकती थी, लेकिन वह अधिकारियों की निजी सुख-सुविधा पर खर्च कर दी गई। इस मामले की गहन जांच और कड़ी कार्रवाई ही जनता के विश्वास को फिर से कायम कर सकती है।