उतराखंड के उत्तरकाशी में लोक निर्माण विभाग (PWD) में वर्षों से ठेके पर काम कर रहे मेट-बेलदार कर्मचारियों का गुस्सा आखिर फूट पड़ा. मंगलवार को मेट बेलदार कर्मचारी संघ के बैनर तले सैकड़ों कर्मचारियों ने अधीक्षण अभियंता कार्यालय के बाहर एक दिवसीय धरना दिया और सरकार व विभाग के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की. कर्मचारियों ने साफ कर दिया कि यदि जल्द समाधान नहीं हुआ, तो वे उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होंगे.
धरने का मुख्य मुद्दा वर्षों से चल रहे कर्मचारियों को जेम (GEM) और प्रयाग पोर्टल के माध्यम से नियमित करने का है. कर्मचारियों का कहना है कि 11 अगस्त 2023 को शासनादेश जारी होने के बावजूद विभाग ने अभी तक उन्हें पोर्टल के माध्यम से सेवायोजित नहीं किया है.
“हम ठेकेदारी शोषण से परेशान हैं” – संघ अध्यक्ष
जिलाध्यक्ष जयेंद्र सिंह ने कहा, “पहले हमें प्राइवेट एजेंसियों और ठेकेदारों के माध्यम से नियुक्त किया गया. ये एजेंसियां मजदूरी काटती थीं, समय पर भुगतान नहीं करती थीं. जब हमने विरोध किया तो शासन ने 2023 में एक आदेश जारी किया कि हमें GEM और प्रयाग पोर्टल से सेवायोजित किया जाएगा. लेकिन अब विभाग खुद इस आदेश को लागू करने में आनाकानी कर रहा है.”
उन्होंने विभागीय अधिकारियों पर शासनादेश को जानबूझकर टालने का आरोप लगाते हुए कहा कि अगर उनकी मांगों पर शीघ्र निर्णय नहीं लिया गया, तो कर्मचारी सड़कों पर उतरकर संघर्ष करेंगे.
मजदूर यूनियनों की प्रतिक्रिया: यह सिर्फ PWD की नहीं, पूरे राज्य की मजदूर नीति की विफलता है
उत्तराखंड मजदूर संगठन मंच (UMSM) के संयोजक रमेश पंवार ने कहा कि “PWD में जो हो रहा है, वह तमाम विभागों में ठेकेदारी व्यवस्था के कारण मजदूरों की बदहाली की एक बानगी है. GEM और प्रयाग पोर्टल को पारदर्शिता और नियमितीकरण के लिए लाया गया, लेकिन जब उसे लागू ही नहीं किया जा रहा, तो यह मजदूरों के साथ दोहरा अन्याय है.”
भारतीय मजदूर संघ के जिला महासचिव अनिल रावत ने कहा कि “लोक निर्माण विभाग की ये लापरवाही सिर्फ तकनीकी बहाने नहीं, बल्कि मजदूर-विरोधी मानसिकता को दिखाती है. हम मेट-बेलदार संघ के साथ हैं और आवश्यकता पड़ी तो राज्यव्यापी समर्थन देंगे.”
क्यों फंसा है GEM और प्रयाग पोर्टल का मामला
राज्य सरकार ने GEM और प्रयाग पोर्टल को एक डिजिटल प्लेटफॉर्म के रूप में लॉन्च किया था ताकि ठेकेदारी शोषण से बचा जा सके और आउटसोर्स कर्मचारियों को पारदर्शी व नियमित नियुक्ति मिल सके. लेकिन ज़मीनी स्तर पर विभागों ने इस व्यवस्था को पूरी तरह से लागू नहीं किया है.
विभागीय अधिकारी कई बार तकनीकी समस्याओं, बजट और अनुमोदन की प्रक्रिया का हवाला देकर आदेशों को लटकाते रहे हैं. इससे सबसे अधिक नुकसान उन कर्मचारियों को हो रहा है जो 10-15 वर्षों से अस्थायी रूप से काम कर रहे हैं, लेकिन उनके पास कोई भविष्य की सुरक्षा नहीं है.
अब आर-पार की लड़ाई की ओर बढ़ते कर्मचारी
PWD मेट-बेलदार संघ का धरना अब सिर्फ मांगों का ज्ञापन नहीं रहा, यह एक निर्णायक मोड़ पर पहुंचता दिख रहा है. कर्मचारियों ने साफ कर दिया है कि उन्हें अब सिर्फ आश्वासन नहीं, आदेश और नियुक्ति पत्र चाहिए.
विभाग यदि जल्द समाधान नहीं निकालता, तो यह आंदोलन उत्तराखंड के अन्य जिलों में भी फैल सकता है, और सरकार के लिए एक बड़ी प्रशासनिक चुनौती बन सकता है.