हिमालयी राज्य उत्तराखंड हर साल मॉनसून के दौरान प्राकृतिक आपदाओं की मार झेलता है. कहीं भूस्खलन से रास्ते बंद हो जाते हैं, तो कहीं बारिश की मार से पुल ढह जाते हैं. लेकिन इस बार राज्य सरकार और लोक निर्माण विभाग (PWD) ने समय रहते कमर तो कस ली है. आपदा की आशंका को देखते हुए विभाग ने राज्यभर में 338 वैकल्पिक मार्ग चिन्हित कर लिए हैं. साथ ही अगले 15 दिनों के भीतर राज्य के सभी छोटे-बड़े पुलों का निरीक्षण करने के निर्देश जारी कर दिए गए हैं.
338 वैकल्पिक मार्ग: बंद रास्तों का विकल्प तैयार
उत्तराखंड की भौगोलिक बनावट पहाड़ी और चुनौतीपूर्ण है. ऐसे में हर साल बारिश आते ही सैकड़ों सड़कें अवरुद्ध हो जाती हैं. PWD के मुताबिक राज्य में 1104 ऐसी सड़कें चिन्हित की गई हैं, जो हर साल मॉनसून के दौरान बाधित होती हैं. इन्हीं के सापेक्ष 338 वैकल्पिक मार्ग तय किए गए हैं, ताकि आपदा के समय यातायात व्यवस्था ठप न हो और आवश्यक सेवाएं सुचारु रूप से चलती रहें .
278 मशीनें रहेंगी तैनात
PWD विभागाध्यक्ष राजेश चंद्र शर्मा ने बताया कि संवेदनशील इलाकों, विशेषकर क्रोनिक लैंडस्लाइड ज़ोन की पहचान कर ली गई है. वहां जेसीबी और पोकलेन जैसी भारी मशीनों की तैनाती की जाएगी. विभाग की योजना के मुताबिक कुल 278 मशीनें आपदा राहत के लिए तैयार रखी जाएंगी.
पुलों की मरम्मत और जांच अभियान
PWD सचिव पंकज कुमार पांडे ने बताया कि राज्य के पुलों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सर्वेक्षण कराया गया, जिसमें 91 पुल ‘अनसेफ’ यानी असुरक्षित पाए गए. उनमें से 66 पुलों की मरम्मत पूरी हो चुकी है. शेष पुलों को दुरुस्त करने के लिए कार्य योजना तैयार की जा रही है. इसके साथ ही अगले 15 दिनों में सभी पुलों का पुनः निरीक्षण करने के आदेश जारी किए गए हैं.
उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं पर एक नजर
उत्तराखंड प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से बेहद संवेदनशील राज्य रहा है. पिछले डेढ़ सौ वर्षों के दौरान यहां कई भीषण घटनाएं भी घट चुकी हैं.
- 1880 नैनीताल भूस्खलन: 18 सितंबर
- 1991 उत्तरकाशी भूकंप: 6.8 तीव्रता भूकंप
- 1998 माल्पा भूस्खलन: पिथौरागढ़ जिले में , जिनमें कैलाश मानसरोवर यात्री थे.
- 2013 केदारनाथ आपदा: बादल फटने और भारी वर्षा से आई बाढ़ और भूस्खलन
- 2016 बस्तड़ी/कुमालगौनी भूस्खलन:
- 2020 मुनस्यारी में बादल फटने की घटना: आदि घटनाएँ
भूस्खलन का आंकड़ा भी डराता है
2014 से 2021 तक उत्तराखंड में 14720 भूस्खलन की घटनाएं दर्ज की गई हैं. अकेले चमोली जिले में 3983 घटनाएं हुई हैं, जिससे वह सबसे ज्यादा संवेदनशील जिला बन गया है. इसके अलावा रुद्रप्रयाग और टिहरी गढ़वाल जिले भी भूस्खलन के लिहाज से उच्च जोखिम वाले माने जाते हैं.
उत्तराखंड में हर साल मॉनसून न केवल प्राकृतिक सौंदर्य के दर्शन कराता है, बल्कि आपदा की परीक्षा भी लेता है. इस बार भी सरकार और प्रशासन द्वारा समय रहते जरूरी तैयारियां कर ली गई हैं . चाहे वैकल्पिक मार्ग हों, भारी मशीनों की तैनाती या पुलों की मरम्मत—हर स्तर पर एक योजनाबद्ध प्रयास किया जा रहा है .