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उत्तराखंड में लोक बोली-संस्कृति को मिलेगा नया आयाम, स्कूलों में हर हफ्ते स्थानीय भाषाओं में होंगी प्रतियोगिताएं

उत्तराखंड की लोक संस्कृति, बोली और  साहित्य को संजीवनी देने की दिशा में राज्य सरकार ने कुछ   कदम उठाये  हैं . मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सचिवालय में उत्तराखंड भाषा संस्थान की सभा एवं प्रबंध कार्यकारिणी समिति की बैठक के दौरान कई  घोषणाएं कीं. उत्तराखंड राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित कर ने की जरुरत के साथ ही   नई पीढ़ी को इससे जोड़ने की बात  भी कही  है .

हर हफ्ते स्कूलों में स्थानीय बोली में भाषण-निबंध प्रतियोगिताएं

अब प्रदेश के स्कूलों में हर सप्ताह एक दिन स्थानीय बोली-भाषाओं में भाषण और निबंध प्रतियोगिताएं कराई जाएंगी. मुख्यमंत्री का कहना है कि इससे बच्चों में अपनी जड़ों के प्रति आत्मीयता बढ़ेगी और धीरे-धीरे लोकभाषाएं अपनी  जीवंतता  और बढेगी .

लोक साहित्य और बोली को डिजिटल स्वरूप में संरक्षित किया जाएगा.

बैठक  में  उत्तराखंड की लोक बोलियों, कथाओं, गीतों और साहित्य को। डिजिटल माध्यम से संरक्षित करने की जिम्मेदारी तय की गई . इसके लिए ई-लाइब्रेरी की स्थापना की जाएगी, जहां शोधार्थियों और विद्यार्थियों को उत्तराखंड की भाषायी विविधता पर विस्तृत सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी. लोक कथाओं पर आधारित ऑडियो-विजुअल सामग्री भी तैयार की जाएगी.

बोली आधारित भाषाई मानचित्र और साहित्य महोत्सव

मुख्यमंत्री ने राज्य की सभी प्रमुख और अल्पज्ञात बोलियों को सम्मिलित करते हुए एक भाषाई मानचित्र बनाने की भी घोषणा की. साथ ही, उत्तराखंड भाषा एवं साहित्य का राष्ट्रीय स्तर पर महोत्सव आयोजित किया जाएगा, जिसमें देशभर के साहित्यकार आमंत्रित होंगे.

उत्तराखंड साहित्य भूषण और दीर्घकालीन साहित्य सेवी सम्मान

राज्य सरकार ने साहित्य क्षेत्र में दिए जाने वाले सम्मानों की राशि में वृद्धि की है. अब ‘उत्तराखंड साहित्य भूषण सम्मान’ की राशि 5  लाख से बढ़ाकर 5  लाख 51 हजार रुपये कर दी गई है. वहीं, दीर्घकालीन साहित्य सेवी सम्मान की राशि 5  लाख तय की गई है.

युवा कलमकारों के लिए प्रतियोगिता, सचल पुस्तकालयों की शुरुआत

राज्य के युवाओं को हिंदी साहित्य में प्रोत्साहित करने के लिए ‘युवा कलमकार प्रतियोगिता’ का आयोजन किया जाएगा. इसमें दो वर्ग—18  से 24  वर्ष और 25  से 35 वर्ष के युवा शामिल होंगे. राज्य के दूरस्थ क्षेत्रों तक सचल पुस्तकालयों की व्यवस्था की जाएगी और बड़े प्रकाशकों का सहयोग लेकर विविध विषयों की पुस्तकें उपलब्ध कराई जाएंगी.

‘बाकणा’ का अभिलेखीकरण और साहित्य ग्राम की स्थापना

उत्तराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र में पौराणिक समय से प्रचलित पंडवाणी गायन ‘बाकणा’ को भी संरक्षित किया जाएगा. इसका अभिलेखीकरण कर इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाया जाएगा. साथ ही, राज्य में दो साहित्य ग्रामों की स्थापना की जाएगी, जहां प्रकृति की गोद में साहित्यिक गतिविधियां आयोजित होंगी.

बुके नहीं, अब भेंट में दीजिए किताब

मुख्यमंत्री ने राज्यवासियों से अपील की कि बुके की जगह ‘बुक’ देने की परंपरा शुरू की जाए. यह न केवल ज्ञानवर्धन का साधन बनेगा बल्कि पुस्तक प्रेम को भी प्रोत्साहित करेगा.

स्थानीय बोलियों के लिए वीडियो कंटेंट तैयार करेगा भाषा संस्थान

बच्चों में लोकभाषाओं के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए भाषा संस्थान छोटे-छोटे वीडियो बनाकर स्थानीय बोलियों को लोकप्रिय बनाने की दिशा में कार्य करेगा.

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 उत्तराखंड सरकार द्वारा लिए गए ये निर्णय  यदि धरातल पर  व्यावहारिक रूप लेते हैं  तो यह कदम     सांस्कृतिक संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता  है .  . लोक भाषा, साहित्य और संस्कृति को समर्पित ये प्रयास भावी पीढ़ियों के लिए सांस्कृतिक धरोहर का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं .