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नैनीताल राजभवन में रखा सामान स्कैन करने पर खुद ही बतायेगा अपना इतिहास

उत्तराखंड की सरोवर नगरी नैनीताल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ ऐतिहासिक धरोहरों के लिए भी प्रसिद्ध है. इन्हीं धरोहरों में एक है नैनीताल का राजभवन, जिसे गवर्नर हाउस भी कहा जाता है. यह ब्रिटिश काल की गौथिक वास्तुकला का एक बेजोड़ नमूना है, जो 220 एकड़ के विशाल परिसर में फैला है. समुद्र तल से 6,785 फीट की ऊंचाई पर बसा यह राजभवन न केवल अपनी स्थापत्य कला के लिए बल्कि अपने संग्रहालय, गोल्फ कोर्स और जैव विविधता के लिए भी पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र है. यहां सुल्ताना डाकू के हथियार, एंटीक फर्नीचर और पुराने बर्तन जैसे ऐतिहासिक खजाने संग्रहालय में संरक्षित हैं, जो हर आगंतुक को अतीत की सैर कराते हैं.

ब्रिटिश वास्तुकला का अनमोल रत्न

नैनीताल का राजभवन ब्रिटिश शासन की विरासत का प्रतीक है. इसकी नींव 27 अप्रैल, 1897 को रखी गई थी, और मार्च 1900 में यह बनकर तैयार हुआ. इतिहासकार प्रो. अजय रावत के अनुसार, यह भवन गौथिक शैली में निर्मित है, जो इंग्लैंड के स्कॉटलैंड स्थित रानी एलिजाबेथ के समर पैलेस, बलमोराल, से प्रेरित है. हालांकि इसे अक्सर लंदन के बकिंघम पैलेस की तर्ज पर बताया जाता है, लेकिन इसकी वास्तविक आकृति बलमोराल से मिलती-जुलती है. पहले इस भवन में ऊंची, तीखी ढलान वाली चिमनीनुमा मीनारें थीं, जो इसे बलमोराल की प्रतिकृति बनाती थीं. बिजली गिरने की घटनाओं के बाद इन मीनारों को हटा दिया गया, लेकिन भवन की मूल गौथिक शैली आज भी अपनी भव्यता बरकरार रखे हुए है.

मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल के डिजाइनर फ्रेडरिक विलियम स्टीवंस ने इस राजभवन का डिजाइन तैयार किया था. बर्मा टीक, स्थानीय पत्थरों, और इंग्लैंड से लाए गए शीशों व टाइल्स से बनी इस इमारत की एशलर फिनिशिंग इसे और भी आकर्षक बनाती है. 115 कमरों वाला यह दोमंजिला भवन अंग्रेजी के ‘E’ अक्षर की आकृति में बना है, जिसमें स्विमिंग पूल और विशाल बगीचे भी शामिल हैं.

संग्रहालय में सुल्ताना डाकू से लेकर एंटीक फर्नीचर खजाने तक

राजभवन के भीतर स्थित संग्रहालय पर्यटकों के लिए एक खास आकर्षण है. यहां सुल्ताना डाकू के भाले, तलवारें और अन्य हथियार प्रदर्शित हैं, जो 19वीं सदी के इस मशहूर डाकू की कहानी बयां करते हैं. सुल्ताना को ‘भारतीय रॉबिनहुड’ भी कहा जाता था, क्योंकि वह अमीरों को लूटकर गरीबों की मदद करता था. संग्रहालय में इसके अलावा एंटीक फर्नीचर, पुराने बर्तन, और 100 वर्ष पुरानी भगवान गणेश की मूर्तियां भी हैं, जिन्हें नेपाल नरेश ने अंग्रेज शासकों को भेंट किया था. ये वस्तुएं ब्रिटिश काल की शान-शौकत और कला को दर्शाती हैं. नैनीताल का पहला गुरुद्वारा भी इसी परिसर में स्थापित किया गया था, जो इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को और बढ़ाता है.

गोल्फ कोर्स एशिया का सबसे ऊंचा गोल्फ कोर्स

राजभवन का 45 एकड़ में फैला गोल्फ कोर्स उत्तर भारत का सबसे खूबसूरत और एशिया का सबसे ऊंचा गोल्फ कोर्स माना जाता है. 1925 में ब्रिटिश शासकों द्वारा बनाया गया यह गोल्फ कोर्स आज भी शौकिया और पेशेवर खिलाड़ियों को आकर्षित करता है. हॉफ कोर्स प्रबंधक कर्नल हरीश साह के अनुसार, यहां प्रतिवर्ष गवर्नर्स गोल्फ कप प्रतियोगिता आयोजित की जाती है, जिसमें विदेशी खिलाड़ी भी हिस्सा लेते हैं. 2015 से शुरू हुए छात्रों के लिए टूर्नामेंट ने इसकी लोकप्रियता को और बढ़ाया है. हरियाली और पहाड़ों के बीच बसा यह गोल्फ कोर्स पर्यटकों के लिए भी एक अनूठा अनुभव प्रदान करता है.

जैव विविधता का खजाना

राजभवन का 220 एकड़ का परिसर प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग है. इसमें 8 एकड़ में भवन और बगीचे, 45 एकड़ में गोल्फ कोर्स, और 160 एकड़ में घना जंगल शामिल है. प्रख्यात उद्घोषक हेमंत बिष्ट के अनुसार, यहां बांज, तिलौंज, देवदार, अखरोट, चिनार और दुर्लभ जिंकोबा बाइलोबा जैसे वृक्ष पाए जाते हैं. बार्किंग डियर, सांभर, पाम सिवेट कैट, कलीज फेसेंट, हिमालयन ब्लू व्हिस्लिंग थ्रश, और मैगपाई जैसे प्रवासी पक्षी इस जंगल की शोभा बढ़ाते हैं. कई बार भालू और गुलदार भी देखे गए हैं, जो इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता को दर्शाते हैं.

ऐतिहासिक मेहमान और विरासत

नैनीताल का राजभवन कई ऐतिहासिक हस्तियों का साक्षी रहा है. आजादी के बाद भारत की प्रथम राज्यपाल सरोजिनी नायडू यहां रहीं. इसके अलावा, प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह, और नेपाल के राजा त्रिभुवन वीर विक्रम शाह जैसी शख्सियतें यहां ठहर चुकी हैं. 1950 में देश का पहला वन महोत्सव भी यहीं से शुरू हुआ, जब तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री के.एम. मुंशी ने एक बांज का पेड़ रोपा.

पर्यटकों के लिए खुला खजाना

1994 से राजभवन को आम लोगों के लिए खोल दिया गया है, जिससे पर्यटक इसकी भव्यता और इतिहास का आनंद ले सकते हैं. राजभवन केवल एक भवन नहीं, बल्कि ब्रिटिश काल की शान-शौकत, गौथिक वास्तुकला और प्रकृति की गोद में बसी जैव विविधता का संगम है. इसका संग्रहालय सुल्ताना डाकू के हथियारों और एंटीक वस्तुओं के साथ इतिहास को जीवंत करता है. गोल्फ कोर्स और घने जंगल इसे पर्यटकों के लिए और भी आकर्षक बनाते हैं. यह राजभवन न केवल नैनीताल की शान है, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक भी है.

यहां आने वाले पर्यटक न केवल इसकी वास्तुकला की भव्यता से मंत्रमुग्ध होते हैं, बल्कि इसके प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता से भी अभिभूत होते हैं. राजभवन का संग्रहालय इतिहास प्रेमियों को अतीत की सैर कराता है, जहां सुल्ताना डाकू की कहानियां और ब्रिटिश काल की वस्तुएं जीवंत हो उठती हैं. गोल्फ कोर्स पर आयोजित प्रतियोगिताएं खेल प्रेमियों को लुभाती हैं, और जंगल में पाए जाने वाले दुर्लभ वनस्पति और जीव-जंतु प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग का अनुभव प्रदान करते हैं.

नैनीताल का राजभवन एक ऐसी जगह है, जहां इतिहास, प्रकृति, और संस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिलता है. यह ब्रिटिश शासन की भव्यता और उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक है. चाहे आप इतिहास के शौकीन हों, प्रकृति प्रेमी हों, या गोल्फ के दीवाने, यह राजभवन हर किसी के लिए कुछ न कुछ खास लेकर आता है. 1994 से इसे आम लोगों के लिए खोल दिए जाने के बाद, यह हर साल हजारों पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है. नैनीताल की यात्रा तब तक अधूरी है, जब तक आप इस ऐतिहासिक और प्राकृतिक खजाने को नहीं देख लेते.