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Election postponed : उत्तराखंड में खाली रहेंगी पंचायतें, अध्यादेश में तकनीकी पेच फंसा, चुनाव टले

उत्तराखंड में ग्राम, क्षेत्र और जिला पंचायतें फिलहाल खाली ही रहेंगी। इन त्रिस्तरीय पंचायतों में प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, लेकिन उनकी पुनर्नियुक्ति के लिए पंचायती राज एक्ट में संशोधन को लेकर राजभवन से अध्यादेश जारी होने में तकनीकी पेच फंस गया है। यह पेच विशेष रूप से हरिद्वार से जुड़े एक पुराने प्रकरण से संबंधित है।

प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त, चुनाव में देरी

उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए पंचायती राज एक्ट में यह व्यवस्था है कि यदि किसी कारणवश पांच साल के भीतर चुनाव नहीं कराए जा सकते, तो सरकार छह महीने के लिए प्रशासकों की नियुक्ति कर सकती है। इसी व्यवस्था के तहत, हरिद्वार को छोड़कर राज्य की अन्य ग्राम, क्षेत्र और जिला पंचायतों में छह महीने के लिए प्रशासकों की नियुक्ति की गई थी। हालांकि, अब इन सभी प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है। इसके बावजूद, पंचायतों में अभी तक चुनाव नहीं कराए जा सके हैं, जिससे संवैधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। अब सरकार पंचायतों में प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति की तैयारी कर रही है, जिसके लिए पंचायती राज एक्ट में संशोधन आवश्यक है।

हरिद्वार का मामला बना तकनीकी अड़चन

पंचायती राज एक्ट में संशोधन के लिए राजभवन भेजे गए अध्यादेश को विधायी विभाग एक बार पहले ही लौटा चुका है। लौटाने का कारण हरिद्वार से जुड़ा एक पुराना मामला था। विधायी विभाग ने तर्क दिया था कि एक ही तरह के अध्यादेश को दोबारा राजभवन की मंजूरी के लिए नहीं भेजा जा सकता। दरअसल, हरिद्वार जिले में 2021 में त्रिस्तरीय पंचायतों का पांच साल का कार्यकाल खत्म होने के बाद चुनाव न होने पर छह महीने के लिए प्रशासक नियुक्त किए गए थे। जब इन प्रशासकों का कार्यकाल भी खत्म हो गया, तब पंचायतों में उनकी पुनर्नियुक्ति के लिए एक्ट में संशोधन हेतु एक अध्यादेश लाया गया था। हालांकि, अध्यादेश लाने के कुछ समय बाद ही हरिद्वार जिले में पंचायत चुनाव करा लिए गए, जिसकी वजह से इस अध्यादेश को विधानसभा से पारित नहीं कराया गया। यदि यह उस समय विधानसभा से पास हो जाता, तो यह एक स्थायी कानून बन जाता।

संविधान का ‘कपट’ और अध्यादेश की वापसी

पंचायती राज एक्ट के जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह व्यवस्था दी है कि यदि कोई अध्यादेश एक बार वापस आ गया हो, तो उसे फिर से उसी रूप में नहीं लाया जा सकता। ऐसा करना संविधान के साथ ‘कपट’ माना जाएगा। यही कारण है कि विधायी विभाग ने राजभवन भेजे गए मौजूदा अध्यादेश को वापस लौटा दिया था। अब इस अध्यादेश में कुछ संशोधन कर इसे दोबारा राजभवन भेजा गया है, उम्मीद है कि इस बार यह पास हो जाएगा।

इस तकनीकी पेच के कारण, प्रदेश में कुल 10760 त्रिस्तरीय पंचायतें (हरिद्वार की 318 ग्राम पंचायतों को छोड़कर 7478 ग्राम पंचायतें, 2941 क्षेत्र पंचायतें और 341 जिला पंचायतें) खाली रहेंगी। ग्राम पंचायतों में प्रशासकों का कार्यकाल चार दिन पहले, जबकि क्षेत्र पंचायतों में दो और जिला पंचायतों में एक जून को प्रशासकों का छह महीने का कार्यकाल समाप्त हो चुका है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों के विकास कार्यों पर सीधा असर पड़ सकता है।