उत्तराखंड के काशीपुर में लगभग 10 साल 9 महीने पहले हुए एक जघन्य दोहरे हत्याकांड में, तृतीय अपर सत्र न्यायाधीश मुकेश चंद्र आर्या ने 10 दोषियों को कठोर आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। अदालत ने प्रत्येक दोषी पर 20,500 रुपये का जुर्माना भी लगाया है। यह फैसला उन परिवारों के लिए एक लंबी प्रतीक्षा के बाद न्याय की उम्मीद लेकर आया है जिन्होंने अपनों को खो दिया था।
क्या था मामला
यह मामला 24 अगस्त 2014 को काशीपुर के कुंडा थाने में ग्राम दुर्गापुर निवासी बचन सिंह द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी से जुड़ा है। बचन सिंह ने अपनी शिकायत में बताया था कि उनका बेटा हरनाम सिंह उर्फ हनी गांव में अवैध कच्ची शराब बेचने वालों का विरोध करता था। इस वजह से शराब बेचने वाले कश्मीर सिंह उर्फ शीरी, जसवंत सिंह उर्फ नंदी, विंदर सिंह (सभी दुर्गापुर निवासी), लखविंदर सिंह उर्फ वीरी (ग्राम किलावली निवासी), जस्सा सिंह, मंगल सिंह उर्फ मंगत, बबलू सिंह, पासी सिंह, पप्पी सिंह (सभी नवलपुर निवासी) और दारा सिंह उनके बेटे से दुश्मनी रखते थे।
साजिश और हत्या
बचन सिंह के अनुसार, 21 अगस्त 2014 की दोपहर आरोपी उनके घर आए और हनी के घर पर न मिलने पर उसे समझा लेने के लिए कहते हुए जान से मारने की धमकी दी। अगले दिन, 22 अगस्त की शाम को, अब्दुल रहमान (गुज्जर डेरा तुमड़िया डाम निवासी) ने हनी को बहाने से डेरे पर बुलाया। आरोप है कि वहाँ आरोपियों ने मिलकर हरनाम सिंह उर्फ हनी और उसके साथी कुलवंत सिंह उर्फ गोले की हत्या कर दी और उनके शवों को जंगल में फेंक दिया। दो दिन बाद, 24 अगस्त को, दोनों शव मच्छी कोटा के पास से बरामद किए गए थे।
लंबी न्यायिक प्रक्रिया के बाद सजा
पुलिस ने मामला दर्ज करने के बाद आरोपियों को गिरफ्तार किया और जांच में कई लोगों की संलिप्तता पाई। इस मुकदमे की सुनवाई तृतीय अपर सत्र न्यायाधीश मुकेश चंद्र आर्या की अदालत में हुई। अभियोजन पक्ष ने मामले को मजबूती से रखने के लिए 18 गवाह और विभिन्न साक्ष्य प्रस्तुत किए। इन गवाहों और साक्ष्यों के आधार पर, अदालत ने निम्नलिखित 10 दोषियों को कठोर आजीवन कारावास की सजा सुनाई :
• जसवंत सिंह उर्फ नंदी
• जसवंत सिंह उर्फ जस्सा
• भगत सिंह उर्फ भगत
• प्रकाश सिंह उर्फ पासी
• लखवीर सिंह उर्फ वीरी
• दारा सिंह
• प्रकाश सिंह
• चांदी सिंह
• लाल सिंह उर्फ बलविंदर सिंह
• बलविंदर सिंह उर्फ विंदर
अदालत का यह फैसला दिखाता है कि न्याय भले ही धीमी गति से चले, लेकिन अंततः वह अपनी मंजिल तक पहुंचता है। यह उन लोगों के लिए भी एक संदेश है जो कानून को अपने हाथ में लेने की कोशिश करते हैं कि उन्हें अपने किए का हिसाब देना होगा। पीड़ित परिवारों ने लगभग ग्यारह साल के लंबे इंतजार के बाद राहत की सांस ली है।