भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ती सैन्य तनातनी अब सिर्फ दो देशों की बात नहीं रह गई है। यह तनाव अब वैश्विक चिंता का विषय बन चुका है, और यही वजह है कि अमेरिका जैसे देश भी अब खुलकर प्रतिक्रिया दे रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद हालात जिस तेजी से बदले हैं, उससे पूरी दुनिया की सांसें अटकी हुई हैं।
अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने Fox News को दिए इंटरव्यू में भारत-पाकिस्तान तनाव पर साफ कहा, “हम इन दोनों देशों को शांत रहने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं, लेकिन हम इस युद्ध में शामिल नहीं होने जा रहे। यह हमारा युद्ध नहीं है और अमेरिका के पास इसे नियंत्रित करने की कोई ताकत नहीं है। हम भारत या पाकिस्तान में से किसी को भी हथियार डालने को नहीं कह सकते। हमारी भूमिका सिर्फ कूटनीतिक है।” वेंस ने आगे कहा, “हमारी सबसे बड़ी चिंता यह है कि यह मामला किसी बड़े क्षेत्रीय युद्ध या परमाणु संघर्ष में न बदल जाए। अगर ऐसा हुआ, तो इसके नतीजे बेहद विनाशकारी होंगे।”
रूस, चीन, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ की भी इस पूरे घटनाक्रम पर नजर
अमेरिका ही नहीं, बल्कि रूस, चीन, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ की भी इस पूरे घटनाक्रम पर नज़र है। परमाणु हथियारों से लैस दोनों देशों के बीच तनाव जितना बढ़ेगा, उतना ही पूरी दुनिया के लिए खतरा पैदा होगा। खासतौर पर तब, जब सीमाओं पर सीज़फायर बार-बार टूट रहा हो और युद्धक विमान लगातार गश्त कर रहे हों।
भारत ने अपनी तरफ से कोई उकसाने वाली बयानबाज़ी नहीं की है। लेकिन यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता से समझौता नहीं करेगा। सरकार और सेना दोनों की तरफ से यह साफ है कि अगर पाकिस्तान की तरफ से कोई दुस्साहस किया गया, तो उसका करारा जवाब दिया जाएगा।
भारत और पाकिस्तान दोनों ही परमाणु ताकतें
भारत और पाकिस्तान दोनों ही परमाणु ताकतें हैं। 1998 में दोनों देशों ने अपने-अपने परमाणु परीक्षण कर यह दिखा दिया था कि वो अंतिम हथियार रखने की क्षमता रखते हैं। आज की तारीख में दोनों देशों के पास दर्जनों वॉरहेड्स हैं। अगर इस तनाव का कोई सिरा छूट गया और मामला परमाणु हमला तक पहुंच गया, तो इसके परिणाम सिर्फ भारत-पाकिस्तान तक सीमित नहीं रहेंगे — पूरा एशिया और संभवतः दुनिया इसकी चपेट में आ सकती है।
युद्ध सिर्फ राजनीतिक प्रतिष्ठा का मसला नहीं
भारत और पाकिस्तान की आम जनता इस समय डरी हुई है। सोशल मीडिया पर एक तरफ देशभक्ति की लहर है, तो दूसरी तरफ युद्ध की आशंका से फैली घबराहट भी दिखाई दे रही है। लोगों को यह समझ आ रहा है कि युद्ध सिर्फ राजनीतिक प्रतिष्ठा का मसला नहीं है, बल्कि इससे आम नागरिकों की जान और जिंदगी दोनों खतरे में पड़ सकती हैं। इस पूरे हालात में एकमात्र रास्ता यही है कि दोनों देशों के बीच बातचीत के दरवाज़े खुले रहें। कूटनीति के जरिए समाधान निकालने की कोशिश हो। ताकि तनाव का स्तर युद्ध तक न पहुंचे।