नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड में 1300 से अधिक सहायक अध्यापक (एलटी) चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र देने पर लगी रोक को बरकरार रखा है। यह मामला शिक्षा विभाग और चयन आयोग के बीच उठे विवादों और परीक्षा प्रक्रिया को लेकर दायर याचिकाओं के चलते कोर्ट में विचाराधीन है। अब इस बहुप्रतीक्षित मामले की अगली सुनवाई सोमवार, 28 अप्रैल 2025 को निर्धारित की गई है।
यह फैसला न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकलपीठ ने सुनाया, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि जब तक याचिकाओं पर अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक किसी भी चयनित अभ्यर्थी को नियुक्ति पत्र नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार और अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से भी विस्तृत जवाब तलब किया है।
मामला क्या है
चमोली जिले के नवीन सिंह असवाल, अजय नेगी और किशन चंद्र सहित कई अन्य अभ्यर्थियों ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। उनका कहना है कि उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) ने 1544 एलटी ग्रेड सहायक अध्यापकों के पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था। 18 अगस्त 2024 को इस पद के लिए लिखित परीक्षा आयोजित की गई थी, जिसमें हजारों अभ्यर्थी शामिल हुए थे।
परीक्षा के बाद चयनित अभ्यर्थियों के प्रमाणपत्रों की जांच 13 से 28 जनवरी 2025 के बीच की गई। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि उन्होंने परीक्षा में सही उत्तर दिए थे, विशेषकर “सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशनल टेक्नोलॉजी” से संबंधित एक सवाल का जवाब जो पहली उत्तर कुंजी में सही माना गया था। लेकिन बाद में संशोधित उत्तर कुंजी में उस उत्तर को गलत घोषित कर दिया गया, जिससे उनके अंक घट गए और वे चयन सूची से बाहर हो गए।
आयोग की गलती या तकनीकी खामी
याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा पूछे गए कुछ प्रश्नों में स्पष्टता नहीं थी। उन्होंने यह भी बताया कि आयोग ने परीक्षा के बाद उत्तर कुंजी जारी की और आपत्तियां आमंत्रित की थीं, लेकिन उन आपत्तियों पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया। कई अभ्यर्थियों ने तकनीकी गलतियों की ओर संकेत किया और दावा किया कि अगर उत्तर कुंजी में बदलाव न किया गया होता, तो उनका चयन सुनिश्चित था।
कोर्ट में तर्क और साक्ष्य
कोर्ट को प्रस्तुत दस्तावेजों और दलीलों के आधार पर यह साबित हुआ कि परीक्षा प्रक्रिया में पारदर्शिता को लेकर कुछ सवाल जरूर उठते हैं। इस कारण न्यायालय ने यह निर्णय लिया कि अंतिम सुनवाई तक किसी भी चयनित अभ्यर्थी को नियुक्ति पत्र न दिया जाए।
अभ्यर्थियों में रोष
इस निर्णय के बाद चयन सूची में आए करीब 1300 अभ्यर्थियों में रोष और निराशा का माहौल है। उनका कहना है कि पूरी चयन प्रक्रिया पारदर्शी रही है और कोर्ट में दाखिल कुछ याचिकाएं इस प्रक्रिया को जानबूझकर बाधित कर रही हैं। वहीं, वंचित अभ्यर्थियों का कहना है कि जब तक सभी के साथ न्याय नहीं होता, तब तक नियुक्ति पर रोक जरूरी है।
अब आगे क्या
28 अप्रैल को इस मामले में अगली सुनवाई होनी है, जिसमें कोर्ट आयोग, सरकार और याचिकाकर्ताओं के विस्तृत तर्कों पर विचार करेगा। इस सुनवाई के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि चयन प्रक्रिया आगे बढ़ेगी या फिर इसमें कोई बड़ा बदलाव आएगा। यह मामला अब राज्य के शिक्षा क्षेत्र में एक बड़ी कानूनी चुनौती के रूप में उभर चुका है, जिसका असर हजारों उम्मीदवारों और राज्य के शिक्षा तंत्र पर पड़ सकता है।