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सरकारी अस्पताल में महंगा इलाज : सुशीला तिवारी हॉस्पिटल की सेवाएं आउटसोर्स, अल्ट्रासाउंड और ईसीजी के लिए जेब पर पड़ेगा भारी बोझ

उत्तराखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों में शुमार हल्द्वानी स्थित सुशीला तिवारी हॉस्पिटल (STH) में अब मरीजों को अपनी जेब पहले से ज्यादा ढीली करनी पड़ेगी। कारण है कि यहां अब अल्ट्रासाउंड, ईसीजी और ईईजी जैसी जरूरी जांच सेवाएं आउटसोर्स के तहत निजी एजेंसियों को सौंप दी गई हैं। इसका सीधा असर मरीजों पर पड़ेगा, क्योंकि उन्हें अब पहले की तुलना में जांच के लिए कहीं अधिक रकम चुकानी होगी।

उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र का यह प्रमुख मेडिकल कॉलेज अस्पताल राज्य के हजारों मरीजों की स्वास्थ्य सेवा की रीढ़ रहा है, लेकिन अब व्यवस्थाओं में हुए इस बड़े बदलाव से आमजन को गहरी चिंता सताने लगी है।

रेडियोलॉजिस्ट की कमी बनी वजह, आउटसोर्स के जरिए भरने की कोशिश

सुशीला तिवारी हॉस्पिटल के प्राचार्य डॉ. अरुण जोशी ने इस फैसले का बचाव करते हुए कहा कि राज्य के अधिकतर सरकारी अस्पतालों में रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टरों की भारी कमी है। मरीजों को बार-बार जांच के लिए निजी लैब की ओर भागना पड़ता है या फिर इंतजार की लंबी कतार झेलनी पड़ती है। इसी कारण अस्पताल प्रशासन ने निर्णय लिया है कि जहां रेडियोलॉजिस्ट की नियुक्ति नहीं हो पा रही, वहां आउटसोर्स के माध्यम से विशेषज्ञों की सेवाएं ली जाएंगी।

डॉ. जोशी ने बताया कि अल्ट्रासाउंड, ईसीजी और ईईजी जैसी सेवाएं अस्पताल में पहले भी थीं, लेकिन स्टाफ की कमी और मशीनों की उपलब्धता सीमित होने के चलते इन्हें दुरुस्त करना मुश्किल हो रहा था। अब आउटसोर्स एजेंसियों के माध्यम से इन सुविधाओं को सुचारु रूप से चलाया जाएगा।

सेवाएं तो मिलेंगी, लेकिन बढ़ेगा खर्च

सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि अब तक जो जांच सरकारी दरों पर मिलती थीं, वह अब तीन गुना तक महंगी हो जाएंगी। उदाहरण के तौर पर, ईसीजी जांच पहले ₹50 में होती थी, लेकिन अब इसका शुल्क ₹175 कर दिया गया है। इसी तरह अल्ट्रासाउंड जांच ₹250 में होती थी, जो अब ₹700 तक पहुंच सकती है।

डॉ. जोशी ने बताया कि इन सेवाओं के लिए शुल्क सरकार द्वारा निर्धारित की गई सीमा में ही लिया जाएगा, लेकिन मरीजों के लिए यह फिर भी आर्थिक बोझ साबित हो सकता है। खासकर गरीब और निम्न मध्यमवर्गीय तबके के मरीजों के लिए यह एक नई परेशानी बनकर उभर सकती है।

ईसीजी और ईईजी भी आउटसोर्स, इमरजेंसी सेवाएं पहले जैसी रहेंगी

डॉ. जोशी ने जानकारी दी कि अस्पताल में इमरजेंसी ईसीजी की सुविधा पहले की तरह ही जारी रहेगी। लेकिन ओपीडी में की जाने वाली ईसीजी जांच अब आउटसोर्स एजेंसी करेगी। साथ ही, अस्पताल में अब तक ईईजी की कोई सुविधा नहीं थी, लेकिन अब यह जांच भी बाहरी विशेषज्ञों के जरिए कराई जाएगी। उन्होंने कहा कि इससे मरीजों को सुविधा मिलेगी और वे बार-बार बाहर की लैब में जाने से बचेंगे। साथ ही, अस्पताल के भीतर ही सस्ती और तेज सेवाएं मिल सकेंगी।

रोजाना पहुंचते हैं 60 से ज्यादा मरीज अल्ट्रासाउंड के लिए

अस्पताल प्रशासन के अनुसार, रोजाना औसतन 50 से 60 मरीज केवल अल्ट्रासाउंड जांच के लिए सुशीला तिवारी हॉस्पिटल पहुंचते हैं। इनमें अधिकतर महिलाएं, गर्भवती महिलाएं और ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले लोग शामिल होते हैं। स्टाफ की कमी और डॉक्टरों के अवकाश के कारण कई बार मरीजों को जांच के लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ता था या निजी लैब का रुख करना पड़ता था। अब उम्मीद की जा रही है कि आउटसोर्स से यह दिक्कत दूर होगी। अस्पताल प्रशासन ने दावा किया है कि जांच सेवाओं की गुणवत्ता और गति में सुधार होगा।

अस्पताल का तर्क- सेवाएं बेहतर होंगी, लेकिन सवाल भी कई

प्राचार्य डॉ. अरुण जोशी ने कहा- यह कदम मरीजों की भलाई के लिए उठाया गया है। हम चाहते हैं कि हर व्यक्ति को समय पर जांच की सुविधा मिले। आउटसोर्स डॉक्टरों से जांच में देरी नहीं होगी और मरीजों को भी राहत मिलेगी। हालांकि अस्पताल की इस व्यवस्था को लेकर विशेषज्ञों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के बीच चिंताएं भी उठ रही हैं। उनका कहना है कि जब सरकारी अस्पतालों की जिम्मेदारी गरीब और जरूरतमंदों को सस्ती चिकित्सा सुविधा देना होता है, तब इस तरह की व्यवस्था से निजीकरण को बढ़ावा मिलता है और सबसे ज्यादा असर उन्हीं लोगों पर पड़ता है जिन्हें यह व्यवस्था सहारा देने के लिए बनी थी।

स्वास्थ्य विभाग की बड़ी चुनौती: संतुलन कैसे बनाए सरकार

इस पूरे मामले पर स्वास्थ्य विभाग पर भी सवाल उठ रहे हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को आउटसोर्स व्यवस्था से पहले स्थायी डॉक्टरों की भर्ती की प्रक्रिया तेज करनी चाहिए थी। अल्ट्रासाउंड और रेडियोलॉजी जैसी जांच सेवाएं अस्पतालों के बुनियादी ढांचे का हिस्सा होती हैं, जिन्हें निजी हाथों में देना एक अस्थायी समाधान तो हो सकता है, लेकिन दीर्घकालिक दृष्टिकोण से यह जनस्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है।