Homeउत्तराखण्डनौनिहाल खतरे के साये में : राज्य में 2210 स्कूल भवन जर्जर अवस्था में

नौनिहाल खतरे के साये में : राज्य में 2210 स्कूल भवन जर्जर अवस्था में

उत्तराखंड में मॉनसून की दस्तक अब बस कुछ ही दिनों की बात है, लेकिन राज्य के हजारों नौनिहालों के लिए जर्जर भवन एक बड़ी आफत बने हुए हैं. प्रदेश के 2210 सरकारी स्कूल जिनकी इमारतें इतनी जर्जर हो चुकी हैं कि उनमें पढ़ाई करना बच्चों की जान जोखिम में डालने जैसा है.

पौड़ी में सबसे ज्यादा खस्ताहाल स्कूल

राज्य शिक्षा विभाग के ताजा आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड में कुल 15,873 सरकारी स्कूल हैं, जिनमें से 2210 स्कूल जर्जर हालत में हैं. पौड़ी गढ़वाल जिले में हालत सबसे गंभीर है जहां 330 स्कूलों की इमारतें मरम्मत की बाट जोह रही हैं. वहीं, चंपावत जिले में ऐसे स्कूलों की संख्या सबसे कम – 90 बताई गई है.

बच्चों की जान पर बन आई

इन स्कूलों की दीवारें दरक चुकी हैं, छतें पानी टपकाती हैं और कई बार इनके गिरने की घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं. बीते वर्षों में मॉनसून के समय ऐसे हादसे हो चुके हैं जिनमें मासूम बच्चे घायल हुए. इसके बावजूद शिक्षा विभाग हर साल यही दोहराता है कि “मरम्मत का कार्य समय रहते पूरा कर लिया जाएगा.” लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके उलट है।

बिना बाउंड्री, टॉयलेट और पानी के कैसे चलेगा स्कूल?

सिर्फ भवन ही नहीं, कई स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं भी नदारद हैं. प्रदेश के 3691 स्कूलों में बाउंड्री वॉल नहीं है. 547 स्कूलों में लड़कों के लिए टॉयलेट नहीं हैं, 361 स्कूलों में लड़कियों के लिए टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है और 130 स्कूल ऐसे हैं जहां पीने के पानी की सुविधा तक नहीं है.

सरकारी दावे बनाम सच्चाई

शिक्षा विभाग के अधिकारी जरूर दावा कर रहे हैं कि “सिर्फ 18 स्कूल डी श्रेणी में हैं जिनकी हालत बेहद खराब है.” मगर विभागीय आंकड़े ही इन दावों की पोल खोलते नजर आ रहे हैं. कुछ स्कूलों की डीपीआर बनाकर मरम्मत का कार्य शुरू किया गया है लेकिन 2210 स्कूलों की लिस्ट देखकर साफ है कि यह प्रयास ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहे हैं.

बीते साल 255 स्कूलों की मरम्मत हुई

राज्य शैक्षिक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान के अनुसार पिछले वर्ष 255 स्कूलों की ‘मेजर रिपेयरमेंट’ की गई और 84 स्कूलों को फिर से बनाया गया. इस वर्ष 190 नए कमरे बनाने का प्रस्ताव है. लेकिन मॉनसून के पहले इतने बड़े पैमाने पर तैयारी अधूरी ही नजर आ रही है.

विशेष सुझाव: क्या करें सरकार और शिक्षा विभाग?

जर्जर स्कूलों की मरम्मत के लिए आपदा प्रबंधन फंड से विशेष फंडिंग की जाए, ताकि कार्य को तात्कालिक प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया जा सके. हर ब्लॉक में इंजीनियरों की टीम तैनात की जाए जो स्कूलों का निरीक्षण कर तत्काल मरम्मत का कार्य करे. सरकार को भवनों के लिए नया बजट आवंटित करना चाहिए . जर्जर भवनों को ‘आपदा-संवेदनशील’ घोषित कर प्रशासनिक संज्ञान में लाया जाए और बच्चों को वैकल्पिक सुरक्षित भवन में स्थानांतरित किया जाए.

“मेरा स्कूल – मेरा गौरव” जैसे अभियानों के जरिए समाज को जोड़ा जाए और स्थानीय स्तर पर निर्माण व सहयोग सुनिश्चित किया जाए. स्कूल इंफ्रास्ट्रक्चर को प्राथमिकता देते हुए शिक्षा बजट की संरचना दोबारा तैयार की जाए और जिलेवार पारदर्शिता के साथ कार्य प्रगति साझा की जाए. उत्तराखंड के हजारों स्कूली बच्चे इन जर्जर भवनों में हर दिन डर के साए में पढ़ाई कर रहे हैं.

मानसून की बारिश जब राहत बनकर आती है, तब ये स्कूल जानलेवा साबित हो सकते हैं. अब वक्त आ गया है कि सरकार और शिक्षा विभाग कागज़ी दावों से बाहर आकर ज़मीनी स्तर पर ठोस कार्रवाई करें.