उत्तराखंड में पंचायत चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं, लेकिन नैनीताल जिले के जमरानी क्षेत्र के चार गांवों के 213 परिवारों के लिए यह चुनाव अंतिम पड़ाव है। इन परिवारों को जल्द ही अपने पैतृक गांवों को छोड़कर कहीं और बसना होगा, क्योंकि उनकी जमीन और मकान गौला नदी पर बन रहे जमरानी बांध के डूब क्षेत्र में आ रहे हैं। यह कहानी न केवल पलायन की त्रासदी को उजागर करती है, बल्कि उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में विकास और विस्थापन के बीच चल रहे संघर्ष को भी रेखांकित करती है।
जमरानी बांध और पलायन की मजबूरी
गौला नदी के अपर स्ट्रीम में बन रहा जमरानी बांध पेयजल और सिंचाई की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक महत्वपूर्ण परियोजना है। इस बांध के निर्माण के लिए नदी के बहाव को बदलने की योजना है, जिसके लिए 650 और 750 मीटर की दो सुरंगें बनाई जा रही हैं। इस परियोजना के कारण चार पंचायतों—पनियाबोर, पस्तोला, उड़वा, और हैड़ाखान—के छह राजस्व गांव प्रभावित हो रहे हैं। इन गांवों के 213 परिवारों के खेत और मकान पूरी तरह से डूब क्षेत्र में आ जाएंगे, जिसके चलते इनका पूर्ण विस्थापन आवश्यक हो गया है।
इन परिवारों को किच्छा के पास प्राग फार्म में बसाया जाएगा। सिंचाई विभाग की जमरानी परियोजना इकाई ने इसके लिए मास्टर प्लान तैयार किया है और स्थान चिह्नित करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। लेकिन यह विस्थापन ग्रामीणों के लिए भावनात्मक और सामाजिक रूप से एक बड़ा झटका है। ये परिवार इस बार अपने गांव में आखिरी बार पंचायत चुनाव में मतदान करेंगे, जिसके बाद वे इन पंचायतों का हिस्सा नहीं रहेंगे।
इन पंचायतों के लिए हो रहा चुनाव
जमरानी बांध के निर्माण से क्षेत्र के छह राजस्व गांव प्रभावित हो रहे हैं। प्रभावित गांव चार पंचायत पनियाबोर, पस्तोला, उड़वा और हैड़ाखान में शामिल हैं। इन पंचायतों में शामिल 213 परिवारों का पूरी तरह से विस्थापन किया जाना है। इसके बाद ये परिवार इन पंचायतों का हिस्सा नहीं रहेंगे।
पहली बार मतदान के साथ गांव छोड़ने का दर्द
पहली बार मतदान में भाग लेने जा रहे युवा पंकज का चुनाव को लेकर उत्साह बना हुआ है। लेकिन इसके बाद अपने खेत खलियान और खेल मैदानों को छोड़ने का दर्द भी सता रहा है। बताया कि विकास के लिए बांध जरूरी है, इसके लिए सैकड़ों परिवारों को अपना मूल गांव छोड़ना पड़ रहा है।