उत्तराखंड की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर का प्रतीक, घी संक्रांति का पर्व इस साल 17 अगस्त 2025 को पूरे उत्साह और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। भाद्रपद मास की पहली तिथि को मनाए जाने वाले इस लोक पर्व को घ्यूं त्यार, ओलगिया त्यौहार, या घी त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार उत्तराखंड की समृद्ध परंपराओं, खेती, और पशुपालन से गहरे जुड़ाव को दर्शाता है।
घी संक्रांति का महत्व
उत्तराखंड, जो अपनी लोककला, सभ्यता, और संस्कृति के लिए विश्व प्रसिद्ध है, सौर पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की संक्रांति को उत्सव के रूप में मनाता है। भाद्रपद संक्रांति पर मनाया जाने वाला घी संक्रांति पर्व खासतौर पर पशुपालकों और किसानों के लिए महत्वपूर्ण है। यह पर्व उस समय मनाया जाता है जब फसलें पकने लगती हैं, पशुधन स्वस्थ होता है, और प्रकृति अपने पूर्ण यौवन पर होती है।
इस दिन घी का विशेष महत्व है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, घी संक्रांति के दिन घी का सेवन अनिवार्य माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि जो व्यक्ति इस दिन घी नहीं खाता, वह अगले जन्म में घोंघे (गनेल) की योनी में जन्म लेता है। इसीलिए लोग इस दिन घी को पहले भगवान को अर्पित करते हैं और फिर इसे अपने भोजन में शामिल करते हैं।घी संक्रांति के दिन उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में लोग अपने पशुओं को स्नान कराकर सजाते हैं और उनके प्रति आभार प्रकट करते हैं। बेड़ू रोटी (उड़द दाल से भरी रोटी), गाबे (अरबी के पत्तों की सब्जी), पत्यूड़, और लापसी जैसे पारंपरिक व्यंजन घी के साथ तैयार किए जाते हैं। यह पर्व न केवल स्वाद का, बल्कि स्वास्थ्य का भी प्रतीक है, क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार घी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

इसके अलावा, ओलगिया की परंपरा इस त्योहार का एक विशेष हिस्सा है। ‘ओलग’ का अर्थ है उपहार। इस दिन लोग अपने रिश्तेदारों, पुरोहितों, और दामादों को घी, फल, सब्जियां, और अन्य उपहार भेंट करते हैं। यह परंपरा कुमाऊं में चंद शासनकाल से चली आ रही है, जो सामाजिक सौहार्द और रिश्तों को मजबूत करती है।सिंह संक्रांति या सूर्य संक्रांति के दिन पूजा-पाठ, स्नान- ध्यान और दान-पुण्य के साथ-साथ घी खाने का महत्व है।
आयुर्वेद में चरक संहिता के अनुसार गाय का घी बेहद शुद्ध और पवित्र होता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी जातक सूर्य संक्रांति के दिन घी का सेवन करता है, उसके यादाश्त, बुद्धि, बल, ऊर्जा और ओज में वृद्धि होती है। इसके अलावा गाय का घी वसा वर्धक है, जिसे खाने से व्यक्ति को वात, कफ और पित्त दोष जैसी परेशानियां नहीं होती हैं। गाय का घी हमारे शरीर से विषैले पदार्थ को बाहर निकाल देता है।