उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की अधिसूचना पर फिलहाल असमंजस की स्थिति बनी हुई है। राज्य निर्वाचन आयोग आज मंगलवार को इस संबंध में निर्णय ले सकता है। शनिवार को जारी की गई चुनाव अधिसूचना के दो दिन बाद ही सोमवार को हाईकोर्ट ने उसे आरक्षण संबंधी याचिका पर अंतरिम राहत देते हुए स्थगित करने का आदेश दे दिया। कोर्ट के इस आदेश से जहां चुनाव कार्यक्रम को लेकर स्थिति उलझ गई है, वहीं प्रदेश में लागू हुई आदर्श आचार संहिता पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया है।
शनिवार को राज्य निर्वाचन आयोग ने ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के चुनाव की अधिसूचना जारी की थी। इसके तहत 25 जून यानी आज से नामांकन की प्रक्रिया शुरू होनी थी। अधिसूचना के साथ ही पूरे प्रदेश में आदर्श आचार संहिता भी लागू हो गई थी। लेकिन सोमवार को नैनीताल हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के पंचायत चुनाव में आरक्षण निर्धारण को चुनौती देने वाले तर्कों को प्रथम दृष्टया सही माना। इसके चलते कोर्ट ने चुनाव प्रक्रिया पर रोक लगाते हुए अधिसूचना को स्थगित करने का निर्देश दिया।
राज्य निर्वाचन आयुक्त सुशील कुमार ने कहा कि फिलहाल आयोग के पास हाईकोर्ट के आदेश की प्रमाणिक प्रति नहीं पहुंची है। उन्होंने बताया कि आयोग अपने अधिवक्ताओं के निरंतर संपर्क में है और आदेश की प्रति मिलते ही आयोग निर्णय लेगा। उन्होंने संकेत दिए कि यदि कोर्ट की स्थगन प्रक्रिया की पुष्टि होती है, तो अधिसूचना के साथ-साथ आदर्श आचार संहिता को भी आगामी आदेश तक स्थगित किया जा सकता है।
सोमवार देर शाम तक आयोग की पूरी टीम हाईकोर्ट के आदेश की प्रतिक्षा करती रही। अधिकारियों का कहना है कि जब तक लिखित आदेश की प्रति प्राप्त नहीं होती, तब तक अधिसूचना को औपचारिक रूप से स्थगित नहीं किया जा सकता। हालांकि मौजूदा परिस्थिति में यह तय माना जा रहा है कि आयोग को आदेश का अनुपालन करना ही होगा।
उल्लेखनीय है कि राज्य में पंचायत चुनाव लंबे समय से लंबित थे। आयोग ने तैयारियां पूरी कर अधिसूचना जारी की थी, जिसके अनुसार जुलाई के अंतिम सप्ताह तक मतदान और मतगणना होनी थी। लेकिन अब यह पूरा कार्यक्रम संशोधित हो सकता है। खास बात यह भी है कि चुनाव की घोषणा के साथ ही प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में आचार संहिता लागू हो गई थी, जिससे शासकीय कार्यों और स्थानांतरण जैसी गतिविधियों पर भी रोक लग गई थी। अब यदि अधिसूचना स्थगित होती है तो यह रोक भी स्वतः हट जाएगी।
आरक्षण को लेकर राज्य सरकार पहले ही कई बार अदालतों की फटकार झेल चुकी है। इस बार भी तय प्रक्रिया के अनुपालन को लेकर सवाल उठाए गए हैं। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि सरकार ने पंचायत चुनावों में महिलाओं, अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण निर्धारण में नियमों का पालन नहीं किया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि आयोग अधिसूचना को स्थगित करता है तो चुनाव की समय-सीमा एक बार फिर पीछे खिसक सकती है। यह स्थिति राज्य सरकार के लिए भी प्रशासनिक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर असहजता पैदा कर सकती है।अब सबकी निगाहें मंगलवार को आयोग द्वारा लिए जाने वाले फैसले पर टिकी हैं। यदि आयोग अधिसूचना को रद्द करता है, तो चुनाव कार्यक्रम पूरी तरह से नए सिरे से तैयार करना पड़ेगा। वहीं, आचार संहिता हटने से स्थानीय निकायों के संचालन और प्रशासनिक फैसलों में अस्थायी राहत मिल सकती है।