उत्तराखंड में पंचायत चुनाव चल रहा है. पंचायत चुनाव की सरगरियां तेज हैं. प्रत्याशी अपने-अपने पक्ष में वोट मांग रहे हैं, लेकिन, उत्तराखंड के नैनीताल जिले का एक ऐसा गांव भी है जहां आजादी के बाद से अब तक हमेशा प्रधान निर्विरोध चुना जाता है.
उत्तराखंड के नैनीताल जिले के बेतालघाट ब्लॉक में स्थित तल्ला वर्धों गांव ने एक बार फिर अपनी अनूठी परंपरा को कायम रखा है। यहां आजादी के बाद से पिछले 78 वर्षों में ग्राम प्रधान का चुनाव कभी नहीं हुआ। इस बार भी पंचायत चुनाव 2025 में तल्ला वर्धों की ग्राम पंचायत में ग्राम प्रधान को बिना किसी विरोध के निर्विरोध चुना गया।
स्थानीय निवासियों के अनुसार, गांव में ग्राम प्रधान का चयन सर्वसम्मति से किया जाता है, जिसमें गांव के लोग मिलकर एक योग्य उम्मीदवार पर सहमति बनाते हैं। इस अनूठी प्रक्रिया ने तल्ला वर्धों को पूरे उत्तराखंड में चर्चा का विषय बना दिया है। यह परंपरा न केवल गांव की एकता को दर्शाती है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सामुदायिक सहमति की मिसाल भी पेश करती है।
राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार, उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव दो चरणों में 24 और 28 जुलाई को होने वाले हैं। लेकिन तल्ला वर्धों जैसे गांव, जहां निर्विरोध चयन की परंपरा है, वहां मतदान की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस गांव की यह खासियत अन्य क्षेत्रों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन रही है।
हालांकि, इस बार पंचायत चुनावों को लेकर उत्तराखंड में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले। नैनीताल हाईकोर्ट ने आरक्षण विवाद के कारण पहले चुनाव प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी, लेकिन बाद में इसे हटा लिया गया, जिसके बाद नए सिरे से चुनाव की तारीखें घोषित की गईं। तल्ला वर्धों के निवासियों का कहना है कि उनकी यह परंपरा किसी भी विवाद से परे है और गांव की एकता को मजबूत करती है।
पूर्व प्रधान हरीश सिंह मेहरा ने कहा गांव के विकास के लिए यह परंपरा अभी आगे भी जारी रहेगी. आजादी के बाद और पंचायती राज एक्ट बनने के बाद से अभी तक इस गांव में प्रधान का चुनाव नहीं हुआ है. पिछले साल दो उम्मीदवार सामने थे. तब भी ग्रामीणों ने तय किया कि कुछ भी हो चुनाव नहीं करेंगे. ऐसे में टॉस उछालकर ग्राम प्रधान चुन लिया गया. चुनाव का लाखों का खर्च ग्रामीणों ने बचाया. इसी परंपरा को आगे बढ़ाने हुए इस बार निर्विरोध ग्राम प्रधान चुना गया है. पूर्व प्रधान हरीश मेहरा ने बताया इस गांव में क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जरूर होता है, लेकिन गांव की सरकार ग्रामीण सर्वसम्मति से ही चुनते हैं.
इस अनोखे गांव की कहानी न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि पूरे राज्य में चर्चा का विषय बनी हुई है। यह दर्शाता है कि लोकतंत्र का असली मोल लोगों की एकता और सहमति में भी निहित है।